Class – 9 Chapter – 7 PRATYABHIGYANAM

CLASS – 9 SANSKRIT SHEMUSHI PART – 1 CHAPTER – 7 PRATYABHIGYANAM | HINDI TRANSLATION | QUESTION ANSWER | कक्षा – 9 संस्कृत शेमूषी भाग – 1 सप्तमः पाठः प्रत्यभिज्ञानम् | हिन्दी अनुवाद | अभ्यास:

Sanskrit Class – 9 Chapter – 7 PRATYABHIGYANAM

सप्तमः पाठः

प्रत्यभिज्ञानम्

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( हिन्दी अनुवाद )

प्रस्तुतोऽयं पाठः महाकविभासप्रणीतम् ‘ पञ्चरात्रम् ‘ इति नाटकात् सम्पाद्य सङ्गृहीतोऽस्ति। अत्र नाटकांशे दुर्योधनादिना राज्ञः विराटस्य गावः अपहृताः तेषाम् उन्मोचनार्थम् विराटपुत्रः उत्तरः अस्य सारथिरूपेण बृहन्नलावेषधारी अर्जुनश्च उभावपि गतवन्तौ । तत्पक्षतः भीष्मादिना सह अर्जुनपुत्रः अभिमन्युरपि युद्धं कृतवान्, युद्धे कौरवाणां पराजयः अभवत्। अस्मिन्नेव क्षणे राजभवने सूचना सम्प्राप्ता यद् वल्लभ इति वेषधारिणा भीमेन रणभूमौ अभिमन्युः आबद्धः। गृहीतः अभिमन्युः अर्जुनभीमौ न प्रत्यभिजानाति, तेन स उभाभ्यां सह सरोषं वार्तालापं करोति। ततः उभौ अभिमन्युं राजसभायां नयतः , तत्र उपस्थितः राजकुमारः उत्तरः उभयोः रहस्यं बोधयति अनेन छद्मवेषधारी पाण्डवानाम् अभिज्ञानं भवति।

हिन्दी अनुवाद

प्रस्तुत यह पाठ महाकवि भास द्वारा रचित ‘ पञ्चरात्रम् ’ नाटक से संपादित कर लिया गया है। यहा नाटक के अंश में दुर्योधन आदि  कौरव वीरो ने  राजा विराट की  गायो का अपहरण कर लिया ।उनको छुड़ाने के लिए राजा विराट के पुत्र उत्तर, बृहन्नला ( छद्मवेषी अर्जुन ) को सारथी बनाकर कौरवो से युद्ध करने जाता है। कौरवो की ओर से भीष्म आदि के साथअभिमन्यु (अर्जुन पुत्र ) भी युद्ध करता है, युद्ध मे कौरवो की पराजय होती है, इसी बीच विराट को सूचना मिलती है, वल्लभ ( छद्मवेशी भीम ) ने रणभूमि में अभिमन्यु को पकड़ लिया है। पकड़ा गया अर्जुन और भीम को पहचान नही पाता और उनसे उग्रतापूर्वक बात करता है, फिर वे दोनों अभिमन्यु को राजसभा में ले जाते है, वहाँ उपस्थित राजकुमार उत्तर भीम तथा अर्जुन का रहस्य बताता है, जिसके द्वारा अन्य छद्मवेषी पांडवो के भी रहस्य का उद्घाटन हो जाता है

1. भटः – जयतु महाराजः।

राजा – अपूर्व इव ते हर्षों ब्रूहि

केनासि विस्मितः?

भटः – अश्रद्धेयं प्रियं प्राप्तं

सौभद्रो ग्रहणं गतः॥

राजा – कथमिदानीं गृहीतः?

भटः – रथमासाद्य निश्शङ्कं

बाहुभ्यामवतारितः।

राजा – केन ?

भटः – यः किल एषनरेन्द्रेण विनियुक्तो महानसे (अभिमन्युमुद्दिश्य ) इत इतः कुमारः।

अभिमन्युः – भोः को नु खल्वेषः? येनभुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीड़ितः अस्मि।

हिन्दी अनुवाद

भट – महाराज की जय हो।

राजा – तुम्हारी प्रसन्नता अद्भुत-सी लग रही है, बताओ किस कारण इतने प्रसन्न हो ?

भट – अविश्वसनीय प्रिय प्राप्त हो गया है, अभिमन्यु पकड़ लिया गया।

राजा – अब वह किस प्रकार पकड़ लिया गया है ?

भट – रथ पर पहुँचकर निश्शङ्क भाव से हाथों द्वारा उतार लिया गया है। राजा

राजा – कैसे ?

भट – निश्चय से जो यह महाराज के द्वारा रसोई में नियुक्त किया गया है ( अभिमन्यु को संकेत करके )

कुमार! इधर से  इधर से ( आओ )।

अभिमन्यु – अरे! यह कौन ? जिसने एक हाथ से पकड़कर अधिक बलशाली होकर भी मुझे पीड़ित नहीं किया।

2. बृहन्नला – इत इत: कुमारः।

अभिमन्युः – अये! अयमपरः कः विभात्युमावेषमिवाश्रितो हरः।

बृहन्नला – आर्य, अभिभाषणकौतूहलं मे महत्। वाचालयत्वेनमार्यः।

वल्लभः – ( अपवार्य ) बाढम् ( प्रकाशम् ) अभिमन्यो।

अभिमन्युः – अभिमन्युर्नाम ?

बल्लभः – रुष्यत्येष मया,  त्वमेवैनमभिभाषय।

बृहन्नला – अभिमन्यो!

अभिमन्युः – कथं कथम्। अभिमन्युर्नामाहम्। भोः!

किमत्र विराटनगरे क्षत्रियवंशोद्भूताः नीचैः अपि नामभिः

अभिभाष्यन्ते अथवा अहं शत्रुवशं गतः। अतएव तिरस्क्रियते।

हिन्दी अनुवाद

बृहन्नला – कुमार! इधर चलें।

अभिमन्यु – अरे! यह दूसरा कौन है ? ऐसा लग रहा है जैसे महादेव ने उमा का वेष ग्रहण किया हो।

बृहन्नला – आर्य, मुझे इससे बात करने की बहुत उत्सुकता हो रही है। आप इसे बोलने के लिए प्रेरित करें।

वल्लभ – ( हटाकर ) अच्छा ( प्रकट रूप से ) अभिमन्यु।

अभिमन्यु – अभिमन्यु ?

बल्लभ – यह मुझसे क्रोधित है। तुम्ही इसे बात करने के लिए प्रेरित करो।

बृहन्नला – अभिमन्यु!

अभिमन्यु – क्यों ? मेरा नाम अभिमन्यु है! अरे! क्या यहाँ विराट नगर में क्षत्रिय कुमारों को नीच लोग भी नाम  लेकर पुकारते हैं, अथवा मैं शत्रुओं के वश मे हो गया। इसलिए अपमानित किया जा रहा हूं।

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3. बृहन्नला – अभिमन्यो! सुखमास्ते ते जननी ?

अभिमन्युः – कथं कथम् ? जननी नाम ? किं भवान् मे पिता अथवा पितृव्यः ? कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छति ?

बृहन्नला – अभिमन्यो! अपि कुशली देवकीपुत्रः केशवः ?

अभिमन्युः – कथं कथम् ?तत्रभवन्तमपिनाम्ना। अथ किम् अथ किम् ?( बृहन्नलावल्लभौ परस्परमवलोकयतः )

अभिमन्युः – कथमिदानीं सावज्ञमिव मां हस्यते ?

बृहन्नला – न खलु किञ्चित्।

पार्थं पितरमुद्दिश्य मातुलं च जनार्दनम्।

तरुणस्य कृतास्त्रस्य युक्तो युद्धपराजयः।।

अभिमन्युः – अलं स्वच्छन्दप्रलापेन!अस्माकं कुले आत्मस्तवं कर्तुमनुचितम्। रणभूमौ हतेषु शरान् पश्य, मदृते अन्यत् नाम न भविष्यति।

बृहन्नला – एवं वाक्यशौण्डीर्यम्। किमर्थं तेन पदातिना गृहीतः ?

अभिमन्युः – अशस्त्रं मामभिगतः। पितरम् अर्जुनं स्मरन् अहं कथं हन्याम्। अशस्त्रेषु मादृशाः न प्रहरन्ति। अतःअशस्त्रोऽयं मां वञ्चयित्वा गृहीतवान्।

राजा – त्वर्यतां त्वर्यतामभिमन्युः।

हिन्दी अनुवाद

बृहन्नला – अभिमन्यु! तुम्हारी माता सकुशल है ?

अभिमन्यु – क्या ? क्या ? माता ? क्या आप मेरे पिता या चाचा हैं ? आप क्यों मुझ पर पिता के समान अधिकार दिखाकर माता के सम्बन्ध में प्रश्न कर रहे हैं ?

बृहन्नला – अभिमन्यु! देवकीपुत्र केशव सकुशल हैं ?

अभिमन्यु – क्या आदरणीय कृष्ण को भी नाम से……। और क्या ? और क्या ? ( कुशल हैं ) ( बृहन्नला और वल्लभ एक-दूसरे की ओर देखते हैं )

अभिमन्यु – ये मुझ पर उपेक्षा करके क्यों हँस रहे हैं ?

बृहन्नला – ऐसा कुछ नहीं है। पिता पार्थ तथा मामा श्री कृष्ण वाला युवक युद्ध में निपुण होकर भी युद्ध में परास्त हो जाता है।

अभिमन्यु – स्वच्छन्द प्रलाप करना बन्द करो। हमारे कुल में आत्मप्रशंसा करना अनुचित है। युद्ध क्षेत्र में गिरे हुए उनबाणों को देखो,  उन पर मेरे अतिरिक्त दूसरा नाम नहीं होगा।

बृहन्नला – अरे वाणी की ऐसी वीरता! फिर उन्होंने तुम्हें पैदल ही क्यों पकड़ लिया ?

अभिमन्यु – वे अशस्त्र ( शस्त्रहीन ) होकर मेरे सामने आए। पिता अर्जुन को याद करके मैं उन्हें कैसे मारता ? मुझ जैसे लोग शस्त्रहीन पर प्रहार नहीं करते। अतः इस शस्त्रहीन ने मुझे धोखा देकर पकड़ लिया।

राजा – अभिमन्यु को शीघ्र बुला लाओ।

4. बृहन्नला – इत इतः कुमारः। एष महाराजः। उपसर्पतु कुमारः।

अभिमन्युः – आः। कस्य महाराजः ?

राजा – एह्योहि पुत्र! कथं न मामभिवादयसि ? ( आत्मगतम् ) अहो! उत्सिक्तः खल्वयं क्षत्रियकुमारः।

अहमस्य दर्पप्रशमनं करोमि। ( प्रकाशम् ) अथ केनायं गृहीतः ?

भीमसेनः – महाराज! मया।

अभिमन्युः – अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम्।

भीमसेनः – शान्तं पापम्। धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते। मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।

अभिमन्युः – मा तावद् भोः! किं भवान् मध्यमः तातः यः तस्य सदृशं वचः वदति।

भीमसेनः – पुत्र! कोऽयं मध्यमो नाम ?

अभिमन्युः – योक्त्रयित्वा जरासन्धं कण्ठश्लिष्टेन बाहुना।

असह्यं कर्म तत् कृत्वा नीतःकृष्णोऽतदर्हताम्।।

राजा – न ते क्षेपेण रुष्यामि, रुष्यता भवता रमे।

किमुक्त्वा नापराद्धोऽहं, कथं तिष्ठति यात्विति।।

अभिमन्युः – यद्यहमनुग्राह्यः

पादयोः समुदाचारः क्रियतां निग्रहोचितः।

बाहुभ्यामाहृतं भीमः बाहुभ्यामेव नेष्यति।।

( ततः प्रविशत्युत्तरः )

हिन्दी अनुवाद

बृहन्नला – कुमार इधर आएँ। यह महाराज हैं। आप समीप जाएँ।

अभिमन्यु – आह! किसके महाराज ?

राजा – आओ। आओ पुत्र। तुम मुझे प्रणाम क्यों नहीं करते ( मन में ) अरे! यह क्षत्रिय कुमार बहुत घमण्डी है।

मैं इसका घमण्ड शान्त करता हूँ। ( प्रकट रूप से ) तो इसे किसने पकड़ा ?

भीमसेन – महाराज! मैंने।

अभिमन्यु – शस्त्रहीन होकर पकड़ा – ऐसा कहिए।

भीमसेन – शान्त हो जाइए। धनुष तो दुर्बलों के द्वारा उठाया जाता है। मेरी तो भुजाएँ ही शस्त्र हैं।

अभिमन्यु – अरे नहीं! क्या आप हमारे मध्यम चाचा हैं ? जो उनके समान वचन बोल रहे हैं।

भीमसेन – पुत्र! यह मध्यम चाचा कौन हैं ?

अभिमन्यु – सुनिए – जिसने अपनी भुजाओं से जरासन्ध का कण्ठावरोध करके कृष्ण के लिए जो असाध्य कार्य था। उसको साध्य बना दिया था।

राजा – तुम्हारे निन्दापूर्ण वचनों से मैं क्रोधित नहीं हूँ। तुम्हारे क्रोध से मुझे आनन्द प्राप्त होता है। तुम यहाँ क्यों खड़े हो ? जाओ यहाँ से, यदि मैं ऐसा कहूँ तो क्या मैं अपराधी नहीं होऊँगा ?

अभिमन्यु – यदि आप मुझ पर कृपा करना चाहते हो तो-

मेरे पैर बाँधकर मुझे उचित दण्ड दीजिए। मैं हाथों से पकड़कर लाया गया हूँ। मेरे मध्यम चाचा भीम मुझे हाथों से ही छुड़वाकर ले जाएँगे।

( तब उत्तर का प्रवेश )

5. उत्तरः – तात! अभिवादये!

उत्तरः – राजा आयुष्मान् भव पुत्र। पूजिताः कृतकर्माणो योधपुरुषाः।

उत्तरः पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा।

राजा – पुत्र! कस्मै ?

उत्तरः – इहात्रभवते धनञ्जयाय।

राजा – कथं धनञ्जयायेति ?

उत्तरः – अथ किम्

श्मशानाद्धनुरादाय तूणीराक्षयसायके।

नृपा भीष्मादयो भग्ना वयं च परिरक्षिताः।।

राजा – एवमेतत्।

उत्तरः – व्यपनयतुभवाञ्छङ्काम्। अयमेव अस्ति धनुर्धरः धनञ्जयः।

बृहन्नला – यद्यहं अर्जुनः तर्हि अयं भीमसेनः अयं च राजा युधिष्ठिरः।

अभिमन्युः – इहात्रभवन्तो मे पितरः। तेन खलु …

न रुष्यन्ति मया क्षिप्ता हसन्तश्च क्षिपन्ति माम्।

दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिताः।।

( इति क्रमेण सर्वान् प्रणमति, सर्वे च तम् आलिङ्गन्ति। )

हिन्दी अनुवाद

उत्तर – भगवन्! मैं प्रणाम करता हूँ।

राजा – दीर्घायु हो पुत्र! क्या युद्ध में वीरता दिखाने वाले वीरों का सत्कार कर दिया गया है ?

उत्तर – अब सबसे अधिक पूज्य की पूजा कीजिए।

राजा – किसकी पूजा पुत्र ?

उत्तर – यहीं उपस्थित अर्जुन की।

राजा – क्या अर्जुन यहाँ आए हैं ?

उत्तर – और क्या ?

पूज्य अर्जुन ने श्मशान से अपना धनुष तथा अक्षय तरकश लेकर भीष्म आदि राजाओं को परास्त कर दिया तथा हम लोगों की रक्षा की।

राजा – ऐसी बात है ?

उत्तर – आप अपना सन्देह दूर करें। धनुर्विद्या में प्रवीण अर्जुन यही हैं।

बृहन्नला – यदि मैं अर्जुन हूँ, तो यह भीमसेन है, और यह राजा युधिष्ठिर हैं।

अभिमन्यु – ये मेरे पूज्य पितागण हैं, इसीलिए……

मेरे निन्दापूर्ण वचनों से ये क्रुद्ध नहीं होते और हँसते हुए मुझे क्रोधित करते हैं। गौ-अपहरण की यह घटना सौभाग्य से सुखान्त हुई। इसी के कारण मुझे अपने सभी पिताओं के दर्शन हो गए।

( ऐसा कहकर क्रम से सबको प्रणाम करता है और सब उसका आलिंगन करते हैं )

शब्दार्थाः

प्रत्यभिज्ञानम् – पहचान

अपूर्वः – जो पहले न हुआ हो

अश्रद्धेयम् – श्रद्धा के अयोग्य

सौभद्रः – अभिमन्यु

आसाद्य – पाकर, पहुँचकर

निश्शङ्कम् – बिना केइसी हिचक के

भुजैकनियन्त्रितः – एक ही हाथ से पकड़ा गया

विभाति – सुशोभित होता है

कौतुहलम् – जानने की इच्छा

अपवार्य – हटाकर

रुष्यति – क्रोधित होता है

वाचालयतु – बोलने को प्रेरित करे

तिरस्क्रियते – उपेक्षा की जाती है

पितृव्यः – चाचा

अवलोकयतः – देखते है ( द्विवचन )

सावज्ञम् – उपेक्षा करते हुए

वाक्यौण्डीर्यम् – वाणी की  वीरता

पदातिः – पैदल चलने वाला

उपसर्पतु – पास जाओ

एहि – आओ

उत्सिक्तः – गर्व से युक्त

दर्प – प्रशमनम् – घमंड को शांत करना

ग्रहीतः – पकड़ा गया

प्रहरणम् – हथियार

योक्त्रयित्वा – बांधकर

क्षेपेण – निंदा से

रमे (✓रम् ) – प्रसन्न होता हूँ

यातु – जाओ

समुदाचारः – सभ्य आचरण

अनुग्राह्यः – कृपा के योग्य

निग्रहोचितम् – कैद के लिए उचित

तूणीर – तरकस

व्यपनयतु – दूर करे

क्षिप्ताः – आक्षेप किये जाने पर

दिष्ट्या – भाग्य से

गोग्रहणम् – गायो का अपहरण

स्वन्तम् ( सु + अन्तम् ) – सुखान्त

अभ्यास:

Sanskrit Class – 9 Chapter – 7 PRATYABHIGYANAM

1. एकपदेन उत्तरं लिखत

(क) कः उमावेषमिवाश्रितः भवति ?

उत्तर. अर्जुनः।

(ख) कस्याः अभिभाषणकौतूहलं महत् भवति ?

उत्तर. बृहन्नलायाः।

(ग) अस्माकं कुले किमनुचितम् ?

उत्तर. आत्मस्तवम्।

(घ) कः दर्पप्रशमनं कर्तुमिच्छति ?

उत्तर. राजा।

(ङ) कः अशस्त्रः आसीत् ?

उत्तर. भीमसेनः।

(च) कया गोग्रहणम् अभवत् ?

उत्तर. दिष्ट्या।

(छ) कः ग्रहणं गतः आसीत् ?

 उत्तर. अभिमन्युः।

2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत

(क) भटः कस्य ग्रहणम् अकरोत् ?

उत्तर. भटः अभिमन्योः ग्रहणं अकरोत्।

(ख ) अभिमन्युः कथं गृहीतः आसीत् ?

उत्तर. अभिमन्युः अशस्त्रेण भीमेसेनेन बाहुभ्यां गृहीतः आसीत्।

(ग) कः वल्लभ – बृहन्नलयोः प्रश्नस्य उत्तरं न ददाति ?

उत्तर. अभिमन्युः वल्लभ – बृहन्नलयोः प्रश्नस्य उत्तरं न ददाति ?

(घ) अभिमन्युः स्वग्रहणे किमर्थम् आत्मानं  वञ्चितम्  अनुभवति ?

उत्तर. युद्धे  निश्शस्त्रं भीमसेनं अवलोक्य सः प्रहारं न अकरोत्। अतः भीमसेनेन गृहीतः सः आत्मानंवञ्चितम् अनुभवति।

(ङ) कस्मात् कारणात् अभिमन्युः गोग्रहणं सुखान्तं मन्यते ?

उत्तर. कौरवैः गवाम् अपहरणस्य कारणात् संजाते युद्धे बंदीभूतः अभिमन्युः विराटनगरे स्वपितृन् पश्यति। अतः सः गोग्रहणं सुखान्तं मन्यते।

3. अधोलिखितवाक्येषु प्रकटितभावं चिनुत

(क) भोः को न खल्वेषः ? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीडितः अस्मि। ( विस्मयः, भयम, जिज्ञासा )

उत्तर. विस्मय:।

(ख) कथं कथं! अभिमन्युर्नामाहम्। (आत्मप्रशंसा, स्वाभिमानः, दैन्यम् )

उत्तर. स्वाभिमानः।

(ग) कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छसे ? ( लज्जा, क्रोधः, प्रसन्नता )

उत्तर. क्रोधः।

(घ) धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते मम तु भुजौ एव प्रहरणम् ( अन्धविश्वासः, शौर्यम्,उत्साहः )

उत्तर. उत्साहः।

(ङ) बाहुभ्यामाहृतं भीमः बाहुभ्यामेव नेष्यति। (आत्मविश्वासः, निराशा, वाक्यसंयमः )

उत्तर. आत्मविश्वास:।

(च) दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिताः। ( क्षमा,हर्षः, धैर्यम् )

उत्तर. हर्ष:।

4. यथास्थानं रिक्तस्थानपूर्ति कुरुत

(क) खलु + एषः = खल्वेषः

(ख) बल + अधिकेन + अपि = बलाधिकेनापि

(ग) विभाति + उमावेषम् + इव + आश्रितः = विभात्युमावेषमिवाश्रितः

(घ) वाचालयतु + एनम् = वाचालयत्वेनम् = वाचालयत्वेनम्‌

(ङ) रुष्यति + एष: = रुष्यत्येष

(च) त्वमेव + एनम् = त्वमेवैनम्।

(छ) यातु + इति = यात्विति

(ज) धनञ्जयाय + इति = धनञ्जयायेति

5. अधोलिखितानि वचनानि कः के प्रति कथयति

यथाकःकं प्रति
आर्य, अभिषाणकौतूहलं मे महत्बृहन्नलाभीमसेनम्
(क) कथमिदानी सावज्ञमिव मा हस्यते।अभिमन्युःभीमसेनम्
(ख) अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम्अभिमन्युःभीमार्जनौ
(ग) पूज्यतमस्य क्रियतां पूजाउत्तरःराजानाम्
(घ) पुत्र! कोऽयं मध्यमो नामराजाअभिमन्युम्
(ङ) शान्तं पापम्! धनुस्तु दुर्बलेः एव गृह्यतेभीमसेनःअभिमन्युम्

6. अधोलिखितानि स्थूलानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि

(क) वाचालयतु एनम् आर्यः।

उत्तर. अभिमन्यवे।

(ख) किमर्थं तेन पदातिना गृहीतः।

उत्तर. भीमसेनाय।

(ग) कथं न माम् अभिवादयसि।

उत्तर. नृपाय।

(घ) मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।

उत्तर. भीमसेनाय।

(ङ) अपूर्व इव अत्र ते हर्षों ब्रूहि केन विस्मितः असि ?

उत्तर. भटाय।

7. श्लोकानाम् अपूर्णः अन्वयः अधोदत्तः। पाठमाधृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत

(क) पार्थं पितरं मातुलं जनार्दनं च उद्दिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य युद्धपराजयः युक्तः।

(ख) कण्ठश्लिष्टेन बाहुना जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्यं कर्म कृत्वा (भीमेन) कृष्णः अतदर्हतां नीतः।

(ग) रुष्यता  भवता रमे। ते क्षेपेण न रुष्यामि, किं उक्त्वा अहं नापराद्धः,कथं (भवान्) तिष्ठति,  यातु इति!

(घ) पादयोः निग्रहोचितः समुदाचारः क्रियताम् । बाहुभ्याम् आहृतम् (माम्) भीमः बाहुभ्याम् एव नेष्यति।

(अ) अधोलिखितेभ्यः पदेभ्यः उपसर्गान् विचित्य लिखत

पदानिउपसर्गः
यथा – आसाद्य –
(क) अवतारितः –अव
(ख) विभाति –वि
(ग) अभिभाषय –अभि
(घ) उद्भूताः –उत्
(ङ) उत्सिक्तः –उत्
(च) प्रहरन्ति –प्र
(छ) उपसर्पतु –उप
(ज) परिरक्षिताः –परि
(झ) प्रणमति –प्र

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