Class – 8 SANSKRIT RUCHIRA PART – 3 CHAPTER – 4 SADAIV PURATO NIDEHI CHARANAM | HINDI TRANSLATION | QUESTION ANSWER | कक्षा – 8 संस्कृत रुचिरा भाग – 3 चतुर्थः पाठः सदैव पुरतो निधेहि चरणम् | हिन्दी अनुवाद | अभ्यास:
Class 8 NCERT Sanskrit Ruchira Part 3 Chapter 4 Sadaiv Purato Nidehi Charanam
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चतुर्थः पाठः
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्
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( हिन्दी अनुवाद )
( श्रीधरभास्कर वर्णेकर द्वारा विरचित प्रस्तुत गीत में चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ने का आह्वान किया गया है। इसके प्रणेता राष्ट्रवादी कवि है और इस गीत के द्वारा उन्होंने जागरण तथा कर्मठता का संदेश दिया है। )
चल चल पुरतो निदेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्।।
हिन्दी अनुवाद – चलो चलो ।आगे कदम रखो। सदा ही आगे कदम रखो।
गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्।
विनैव यानं नगारोहणम्।।
बलं स्वकीयं भवति साधनम्।
सदैव पुरतो………………………..।।
हिन्दी अनुवाद – निश्चित रूप से पर्वत की चोंटी पर हमारा घर है। अत: बिना यान ( वाहन ) के पर्वत की चढ़ाई करनी है। ( उस समय ) हमारा बल ही हमारा साधन होता है। इसलिए सदा ही आगे कदम रखो।
पथि पाषाणा: विषमा: प्रखरा:।
हिंस्रा: पशव: परितो घोरा:।।
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
सदैव पुरतो………………………..।।
हिन्दी अनुवाद – मार्ग में असमान ( टेढे – मेढे ) नुकीले पत्थर है। हिंसक पशुओ ने चारो ओर से घेरा है, चाहे रास्ता कितना भी कठिन हैं। फिर भी हमेशा आगे कदम रखो।
जहीहि भीतिं भज भज शक्तिम्।
विधेहि राष्ट्रे तथाऽनुरक्तिम्।।
कुरु कुरु सततं ध्येय- स्मरणम्।
सदैव पुरतो………………………..।।
हिन्दी अनुवाद – डर को छोङ दो और अपनी शक्ति को याद करो। उसी प्रकार अपने देश से प्रेम करो तथा अपने लक्ष्य को लगातार याद रखो। सदैव आगे कदम रखो।
शब्दार्था:
Class 8 NCERT Sanskrit Ruchira Part 3 Chapter 4 Sadaiv Purato Nidehi Charanam
पुरतो ( पुरत: ) – आगे
गिरीशिखरे – पर्वत की चोंटी पर
निजनिकेतनम् – अपना निवास
विनैव ( विना + एव ) – बिना ही
नगारोहणम् ( नग + आरोहणम् ) – पर्वत पर चढ़ना
स्वकीयम् – अपना
पथि – रास्ते में
पाषाणा: – पत्थर
विषमा: – असामान्य
प्रखरा: – तीक्ष्ण, नुकीले
हिंस्रा: – हिंसक
परितो ( परित: ) – चारो ओर
घोरा: – भयंकर, भयानक
सुदुष्करम् – अत्यंत कठिनता पूर्वक साध्य
जहीहि – छोड़ दो
भज – भजो, जपो
विधेहि – करो
अनुरक्तिम् – प्रेम, स्नेह
सततम् – लगातार
ध्येयस्मरणम् – उद्देश्य ( लक्ष्य ) का स्मरण
अभ्यास:
Class 8 NCERT Sanskrit Ruchira Part 3 Chapter 4 Sadaiv Purato Nidehi Charanam
1. पाठे दत्तं गीतं सस्वरं गायत।
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत
(क) स्वकीयं साधनं किं भवति ?
उत्तर. बलम्।
(ख) पथि के विषमा: प्रखरा: ?
उत्तर. पाषाणा:।
(ग) सततं किं करणीयम् ?
उत्तर. ध्येय स्मरणम्।
(घ) एतस्य गीतस्य रचयिता कः ?
उत्तर. श्रीधरभास्कर वर्णेकर:।
(ङ) स कीदृश: कवि: मन्यते ?
उत्तर. राष्ट्रवादी।
3. मञ्जूषात: क्रियापदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
( निधेहि , विधेहि , जहीहि , देहि , भज , चल , कुरु )
यथा – त्वं पुरत: चरणं निधेहि।
(क) त्वं विद्यालयं चल।
(ख) राष्ट्रे अनुरक्तिं विधेहि।
(ग) मह्यं जलं देहि।
(घ) मूढ! जहीहि धनागमतृष्णाम्।
(ङ) भज गोविन्दम्।
(च) सततं ध्येयस्मरणं कुरु।
4. (अ) उचितकथनानां समक्षं ‘ आम् ‘ अनुचितकथानानां समक्षं ‘ न ‘ इति लिखत
यथा – पुरत: चरणं निधेहि । | आम् |
(क) निजनिकेतनं गिरिशिखरे अस्ति। | आम् |
(ख) स्वकीयं बलं बाधकं भवति। | न |
(ग) पथि हिंस्रा: पशव: न सन्ति। | न |
(घ) गमनं सुकरम् अस्ति। | न |
(ङ) सदैव अग्रे एव चलनीयम्। | आम् |
(आ) वाक्यरचनया अर्थभेदं स्पष्टीकुरुत
परितः (चारों ओर) – ग्रामं परितः वृक्षा: सन्ति।
पुरतः (आगे) – सीतायाः पुरतः रामः चलति।
नगः (पर्वत) – हिमालयः संसारे प्रसिद्धः नगः अस्ति।
नागः (सर्प) – एषः नाग: अति विषधर: अस्ति।
आरोहणम् (चढ़ाई) – पर्वतस्य आरोहणम् दुःखदम् भवति।
अवरोहणम् (उतराई) – पर्वतस्य अवरोहणं रोमांचकं भवति।
विषमाः (असमान) – पर्वतस्य मार्गाः विषमाः एव भवन्ति।
समाः (समान) – राजपुत्राः नृपाय समाः सन्ति।
5. मञ्जूषात: अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
( एव , खलु , तथा , परित: , पुरत: , सदा , विना )
(क) विद्यालयस्य पुरत: एकम् उद्यानम् अस्ति।
(ख) सत्यम् एव जयते।
(ग) किं भवान् स्नानं कृतवान् खलु ?
(घ) सः यथा चिन्तयति तथा आचरति।
(ङ) ग्रामं परितः वृक्षा: सन्ति।
(च) विद्या विना जीवनं वृथा।
(छ) सदा भगवन्तं भज।
6. विलोमपदानि योजयत।
पुरत: | पृष्ठत: |
स्वकीयम् | परकीयम् |
भीति: | साहस: |
अनुरक्ति: | विरक्ति: |
गमनम् | आगमनम् |
7. (अ) लट्लकारपदेभ्य: लोट्- विधिलिङ्लकारपदानां निर्माणं कुरुत
लट्लकारे | लोट्लकारे | विधिलिङ्लकारे |
यथा – पठति | पठतु | पठेत् |
खेलसि | खेल | खेले: |
खादन्ति | खादन्तु | खादेयु: |
पिबामि | पिबानि | पिबेयम् |
हसत: | हसताम् | हसेताम् |
नयाम: | नयाम् | नयेम |
(आ) अधोलिखितानि पदानि निर्देशानुसारं परिवर्तयत।
यथा – गिरिशिखर ( सप्तमी – एकवचने ) – गिरिशिखरे
पथिन् ( सप्तमी – एकवचने ) – पथि
राष्ट्र ( चतुर्थी- एकवचने ) – राष्ट्राय
पाषाण ( सप्तमी – एकवचने ) – पाषाणे
यान ( द्वितीया – बहुवचने ) – यानानि
शक्ति ( प्रथमा- एकवचने ) – शक्ति:
पशु ( सप्तमी – बहुवचने ) – पशुषु
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