CLASS – 7 SANSKRIT RUCHIRA PART – 2 CHAPTER – 6 SADACHAR | Hindi Translation | Question Answer | कक्षा – 7 संस्कृत रुचिरा भाग – 2 षष्ठः पाठः सदाचारः | हिन्दी अनुवाद | अभ्यासः
Class 7 NCERT Sanskrit Ruchira Part 2 Chapter 6 Sadachar
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षष्ठः पाठः
सदाचारः
NCERT BOOK SOLUTIONS | SOLUTIONS FOR NCERT SANSKRIT CLASS 7 CHAPTER 6 IN HINDI
( हिन्दी अनुवाद )
Class 7 NCERT Sanskrit Ruchira Part 2 Chapter 6 Sadachar
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धु: कृत्वा यं नावसीदति।।1।।
हिन्दी अनुवाद – निश्चय से आलस्य मनुष्य के शरीर मे रहने वाला महान् शत्रु है। ( तथा ) परिश्रम के समान ( मनुष्य का ) कोई मित्र नही है जो मनुष्य को कभी दुःखी नही होने देता।
श्व: कार्यमद्य कुर्वीत पूर्वाह्ने चापराह्निकम्।
नहि प्रतीक्षते मृत्युः कृतमस्य न वा कृतम्।।2।।
हिन्दी अनुवाद – आने वाले कल का कार्य आज ही करना चाहिये। दोपहर का कार्य पूर्वाह्न मे। मृत्यु प्रतीक्षा नही करती कि इसका का कार्य हुआ है या नही हुआ। अर्थात् कार्य को कल पर नही टालना चाहिये।
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यप्रियम्।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एषः धर्मः सनातनः।।3।।
हिन्दी अनुवाद – सत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, अप्रिय सत्य नही बोलना चाहिये और प्रिय लगने वाला असत्य भी नही बोलना चाहिये। यही सनातन ( सदा से चला आ रहा ) धर्म है।
सर्वदा व्यवहारे स्यात् औदार्यं सत्यता तथा।
ऋजुता मृदुता चापि कौटिल्यं न कदाचन ।।4।।
हिन्दी अनुवाद – हमेशा व्यवहार मे उदारता, सत्यता, सरलता, और कोमलता भी होनी चाहिये। कभी भी व्यवहार मे टेढापन नहीं होना चाहिये।
श्रेष्ठः जनं गुरुं चापि मातरं पितरं तथा।
मनसा कर्मणा वाचा सेवेत सततं सदा ।।5।।
हिन्दी अनुवाद – सज्जन, गुरु, और माता पिता की मन, कर्म, तथा वाणी से हमेशा सेवा करनी चाहिये।
मित्रेण कलहं कृत्वा न कदापि सुखी जन:।
इति ज्ञात्वा प्रयासेन तदेव परिवर्जयेत् ।।6।।
हिन्दी अनुवाद – मित्र से झगङा करके कोई भी मनुष्य सुखी नही रहता।
यह जानकर उस झगङे को छोङ देना चाहिए।
शब्दार्था:
Class 7 NCERT Sanskrit Ruchira Part 2 Chapter 6 Sadachar
रिपु: | शत्रु |
उद्यम: | परिश्रम |
शरीरस्थ: | शरीर मे स्थित |
अवसीदति | दुःखी होता है |
श्व: | आने वाला कल |
कुर्वीत | करना चाहिये |
पूर्वाह्ने | दोपहर से पहले |
आपराह्निकम् | दोपहर के बाद करने योग्य कार्य |
अनृतम् | झूठ |
सनातन: | सदा से चला आ रहा हो |
स्यात् | हो |
औदार्यम् | उदारता |
ऋजुता | सरलता |
मृदुता | कोमलता |
कौटिल्यम् | कुटिलता , टेढापन |
सेवेत | सेवा करनी चाहिए |
परिवर्जयेत् | बचना चाहिए |
वाचा | वाणी से |
अभ्यासः
1. सर्वान् श्लोकान् सस्वरं गायत
2. उपयुक्तकथनानां समक्षं ‘ आम् ‘ अनुपयुक्तकथनानां समक्षं ‘ न ‘ इति लिखत
(क) प्रात: काले ईश्वरं स्मरेत्। | आम् |
(ख)अनृतं ब्रूयात् । | न |
(ग) मनसा श्रेष्ठजनं सेवेत । | आम् |
(घ) मित्रेण कलहं कृत्वा जन: सुखी भवति। | न |
(ङ) श्व: कार्यम् अद्य कुर्वीत। | आम् |
3. एकपदेन उत्तरत
(क) कः न प्रतीक्षते ?
उत्तर. मृत्यु।
(ख) सत्यता कदा व्यवहारे स्यात् ?
उत्तर. सर्वदा।
(ग) किं ब्रूयात् ?
उत्तर. सत्यं।
(घ) केन सह कलहं कृत्वा नर: सुखी भवेत् ?
उत्तर. मित्रेण।
(ङ) कः महारिपु: अस्माकं शरीरे तिष्ठति ?
उत्तर. आलस्यं।
4. रेखान्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) मृत्यु: न प्रतीक्षते।
प्रश्न. कः न प्रतीक्षते ?
(ख) कलहं कृत्वा नर: दुःखी भवति।
प्रश्न. किं कृत्वा नर: दुःखी भवति ?
(ग) पितरं कर्मणा सेवेत।
प्रश्न. कम् कर्मणा सेवेत ?
(घ) व्यवहारे मृदुता श्रेयसी।
प्रश्न. व्यवहारे का श्रेयसी ?
(ङ) सर्वदा व्यवहारे ऋजुता विधेया।
प्रश्न. कदा व्यवहारे ऋजुता विधेया ?
5. प्रश्नमध्ये त्रीणि क्रियापदानि सन्ति। तानि प्रयुज्य सार्थक वाक्यानि रचयत
उत्तर.
(क) सत्यं प्रियं च ब्रूयात्।
(ख) वाचा गुरुं सेवेत।
(ग) सत्यं अप्रियं च न ब्रूयात्।
(घ) व्यवहारे कदाचन कौटिल्यं न स्यात्।
(ङ) श्रेष्ठजनं कर्मणा सेवेत।
(च) व्यवहारे सर्वदा औदार्यं स्यात्।
(छ) अनृतं प्रियं च न ब्रूयात्।
(ज) मनसा मातरं पितरं च सेवेत।
6. मञ्जूषात: अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
( तथा, न, कदाचन, सदा, च, अपि )
(क) भक्त: सदा ईश्वरं स्मरति।
(ख) असत्यं न वक्तव्यम्।
(ग) प्रियं तथा सत्यं वदेत्
(घ) लता मेधा च विद्यालयं गच्छत:।
(ङ) अपि कुशली भवान् ?
(च) महात्मागान्धी कदाचन अहिंसां न अत्यजत्।
7. चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषात: पदानि च प्रयुज्य वाक्यानि रचयत
7. (क) सः शिक्षकः कक्षायां श्यामपट्टे प्रश्नं लिखति।
(ख) ते छात्रा: उत्तरपुस्तिकायां उत्तराणि लिखन्ति।
(ग) शिक्षकः ‘ बालक:’ इति पदं लिखति।
(घ) केचन छात्रा: श्यामपट्टे पश्यन्ति।
(ङ) तत्र एकं पुस्तकं मञ्चे अस्ति।
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