CLASS 7 SANSKRIT RUCHIRA PART – 2 CHAPTER – 4 HASYABALKAVISAMMELANAM | HINDI TRANSLATION | QUESTION ANSWER | कक्षा – 7 संस्कृत रुचिरा भाग – 2 चतुर्थ: पाठ: हास्यबालकविसम्मेलनम् | हिन्दी अनुवाद | अभ्यास:
Class 7 NCERT Sanskrit Ruchira Part 2 Chapter 4 Hasyabalkavisammelanam
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चतुर्थः पाठः
हास्यबालकविसम्मेलनम्
Class 7 NCERT Sanskrit Ruchira Part 2 Chapter 4 Hasyabalkavisammelanam
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( हिन्दी अनुवाद )
Class 7 NCERT Sanskrit Ruchira Part 2 Chapter 4 Hasyabalkavisammelanam
( विविध-वेशभूषाधारिणः चत्वारः बालकवयः मञ्चस्य उपरि उपविष्टाः सन्ति। अधः श्रोतारः हास्यकविताश्रवणाय उत्सुकाः सन्ति कोलाहलं च कुर्वन्ति। )
हिन्दी अनुवाद – ( विभिन्न वेशभूषा वाले चार बाल कवि मञ्च के ऊपर बैठे हुए हैं। नीचे श्रोता हास्य कविता सुनने के लिए उत्सुक हैं और शोर मचा रहे हैं। )
सञ्चालक: – अलं कोलाहलेन। अद्य परं हर्षस्य अवसरः यत् अस्मिन् कविसम्मेलने काव्यहन्तारः कालयापकाश्च भारतस्य हास्यकविधुरन्धराः समागताः सन्ति। एहि, करतलध्वनिना वयम् एतेषां स्वागतं कुर्मः।
हिन्दी अनुवाद – सञ्चालक – शोर मत करो। आज बहुत प्रसन्नता का अवसर है कि इस कवि सम्मेलन मे काव्य को नष्ट करनेवाले और समय बर्बाद करनेवाले भारत के श्रेष्ठ हास्य कवि आए हुए हैं। आओ! हम सब तालियों से इन सबका स्वागत करें।
गजाधरः– सर्वेभ्योऽरसिकेभ्यो नमो नमः। प्रथमं तावद् अहम् आधुनिकं वैद्यम् उद्दिश्य स्वकीयं काव्यं श्रावयामि
वैद्यराज! नमस्तुभ्यं यमराजसहोदरः।
यमस्तु हरति प्राणान् वैद्यः प्राणान् धनानि च॥
( सर्वे उच्चैः हसन्ति )
हिन्दी अनुवाद – गजाधर – सब नीरस जनों को नमस्कार। तब तक पहले मैं आधुनिक वैद्यों को लक्ष्य करके अपनी कविता सुनाता हूँ
हे वैद्यराज ! यमराज के भाई, आपको नमस्कार है। यमराज तो प्राणों को ले जाता है, वैद्य प्राणों को और धन दोनो को ले जाता है।
( सब जोर से हँसते हैं )
कालान्तकः – अरे ! वैद्यास्तु सर्वत्र परन्तु न ते मादृशाः कुशलाः जनसंख्यानिवारणे। ममापि काव्यम् इदं श्रृण्वन्तु भवन्तः
चितां प्रज्वलितां दृष्ट्वा वैद्यो विस्मयमागतः।
नाहं गतो न मे भ्राता कस्येदं हस्तलाघवम्॥
( सर्वे पुनः हसन्ति )
हिन्दी अनुवाद – कालान्तक – अरे ! वैद्य तो सब जगह हैं, परन्तु वे जनसंख्या कम करने में मेरे जैसे निपुण नहीं हैं। आप सब मेरे भी इस काव्य को सुनिए।
चिता को जलती हुई देखकर वैद्य ने आश्चर्य किया कि न मैं गया, न मेरा भाई, यह किसके हाथ की सफाई है।
( सब फिर हँसते हैं )
तुन्दिल: – ( तुन्दस्य उपरि हस्तम् आवर्तयन् ) तुन्दिलोऽहं भोः! ममापि इदं काव्यं श्रूयताम्, जीवने धार्यतां च-
परान्नं प्राप्य दुर्बुद्धे ! मा शरीरे दयां कुरु ।
परान्नं दुर्लभं लोके शरीराणि पुनः पुनः॥
( सर्वे पुनः अट्टहासं कुर्वन्ति )
हिन्दी अनुवाद – तुन्दिल – ( तोंद के ऊपर हाथ फेरते हुए ) मैं तुन्दिल हूँ। अरे ! मेरी भी इस कविता को सुनो और जीवन में अपनाओ-
दुष्टबुद्धिवाले! दूसरे का अन्न प्राप्त करके शरीर पर दया मत कर। संसार में दूसरे का अन्न दुर्लभ है। शरीर बार-बार मिलता रहता है।
( सब फिर जोर से हँसते हैं )
चार्वाकः – आम्, आम् । शरीरस्य पोषणं सर्वथा उचितमेव। यदि धनं नास्ति, तदा ऋणं कृत्वापि पौष्टिकः पदार्थः एव भोक्तव्यः। तथा कथयति चार्वाककविः
हिन्दी अनुवाद – चार्वाक – हाँ, हाँ। शरीर का पोषण हमेशा ही ठीक रहता है। अगर धन नहीं है ( व्यक्ति के पास ) तब कर्ज लेकर भी पौष्टिक पदार्थों का ही उपभोग करना चाहिए। और चार्वाक कवि कहते हैं
यावज्जीवेत् सुखं जीवेद् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्।
हिन्दी अनुवाद – जब तक जियो सुख से जियो ( जीना चाहिए ), कर्ज ( उधार ) लेकर भी घी पियो ( पीना चाहिए )।
श्रोतार: – तर्हि ऋणस्य प्रत्यर्पणं कथम् ?
हिन्दी अनुवाद – श्रोतागण – तो कर्ज को कैसे चुकाया जाए ?
चार्वाकः – श्रूयतां मम अवशिष्टं काव्यम्
घृतं पीत्वा श्रमं कृत्वा ऋणं प्रत्यर्पयेत् जनः॥
( काव्यपाठश्रवणेन उत्प्रेरितः एकः बालकोऽपि आशुकवितां रचयति, हासपूर्वकं च श्रावयति )
हिन्दी अनुवाद – चार्वाक – मेरी बची हुई कविता भी सुनिए
घी पीकर, परिश्रम करके लोगों को कर्ज वापस कर देना चाहिए।
( काव्य पाठ से प्रेरित होकर एक बालक भी तुरंत कविता की रचना करता है और हँसते हुए सुनाता है )
बालकः – श्रूयताम् ,श्रूयतां भोः! ममापि काव्यम्
गजाधरं कविं चैव तुन्दिलं भोज्यलोलुपम्।
कालान्तकं तथा वैद्यं चार्वाकं च नमाम्यहम्॥
( काव्यं श्रावयित्वा ‘हा हा हा’ इति कृत्वा हसति। अन्ये चाऽपि हसन्ति सर्वे गृहं गच्छन्ति। )
हिन्दी अनुवाद – बालक – अरे सुनिए, सुनिए! मेरी भी कविता-
गजाधर कवि और खाने के लोभी तुन्दिल, ( प्राण लेने वाले ) कालान्तक को तथा वैद्य चार्वाक को मैं प्रणाम करता हूँ।
( कविता सुनाकर ( बालक ) ‘हा हा हा’ ऐसा करके हँसता है। दूसरे भी हँसते हैं और सभी घर जाते हैं। )
शब्दार्थाः
Class 7 NCERT Sanskrit Ruchira Part 2 Chapter 4 Hasyabalkavisammelanam
Meaning in Sanskrit | Meaning in Hindi | Meaning in English |
अध: | नीचे | downwards |
कोलाहलम् | शोर | noise |
काव्यहन्तार: | काव्य को नष्ट करने वाले | destroyers of poetry |
कालयापका: | समय बर्बाद करने वाले | whiling away the time |
धुरन्धरा: | अग्रणी, श्रेष्ठ | the best |
एहि | आये , आइये | please come |
करतलध्वनिना | तालियों से | with clapping sounds |
अरसिकेभ्य: | नीरस जनो को | to the disinterested ( persons ) |
स्वकीयम् | अपने | own |
मादृश: | मेरे जैसे | like me |
हस्तलाघवम् | हाथ की सफाई | hand’s work |
तुन्दस्य | तोंद के | enlarged belly |
आवर्तयन् | फेरता हुआ | putting hands all over |
धार्यताम् | धारण करे | please bear |
परान्नम् (परा + अन्नम् ) | दूसरो के अन्न को | other’s food |
पौष्टिकः | पुष्टि देने वाला | nourishing |
प्रत्यर्पणम् (प्रति + अर्पणम् ) | लौटाना | repaying |
अवशिष्टम् | बचा हुआ , शेष | remaining |
उत्प्रेरित: | प्रेरित होकर | being inspired |
श्रावयति | सुनाता हैं | recites |
भोज्यलोलुपम् | खाने का लोभी | greedy for food |
अभ्यासः
Class 7 NCERT Sanskrit Ruchira Part 2 Chapter 4 Hasyabalkavisammelanam
1. उच्चारणं कुरुत
उपरि | अध: | उच्चै: |
नीचै: | बहि: | अलम |
कदापि | अन्त: | पुनः |
कुत्र | कदा | एकदा |
2. मञ्जूषातः अव्ययपदानि चित्वा वाक्यानि पूरयत
( अलम्, अन्त:, बहि:, अध:, उपरि )
(क) वृक्षस्य उपरि खगा: वसन्ति।
(ख) अलम् विवादेन।
(ग) वर्षाकाले गृहात बहि: मा गच्छ।
(घ) मञ्चस्य अध: श्रोतार: उपविष्टा: सन्ति।
(ङ) छात्रा: विद्यालयस्य अन्त: प्रविशन्ति।
3. अशुद्धं पदं चिनुत
(क) गमन्ति, यच्छन्ति, पृच्छन्ति, धावन्ति।
(ख) रामेण, गृहेण, सर्पेण, गजेण।
(ग) लतया, मातया, रमया, निशया।
(घ) लते, रमे, माते, प्रिये।
(ङ) लिखति, गर्जति, फलति, सेवति।
4. मञ्जूषातः समानार्थक पदानि चित्वा लिखत
( प्रसन्नतायाः, चिकित्सकम्, लब्ध्वा, शरीरस्य, दक्षाः )
प्राप्य – लब्ध्वा
कुशलाः – दक्षा:
हर्षस्य – प्रसन्नताया:
देहस्य – शरीरस्य
वैधम् – चिकित्सकम्
5. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत
(क) मञ्चे कति बालकवय: उपविष्टा: सन्ति ?
उत्तर. चत्वार:।
(ख) के कोलाहलं कुर्वन्ति ?
उत्तर. श्रोतार:।
(ग) गजाधर: कम् उद्दिश्य काव्यं प्रस्तौति ?
उत्तर. आधुनिक वैद्यम्।
(घ) तुन्दिल: कस्य उपरि हस्तम् आवत्र्तयति ?
उत्तर. तुन्दस्य।
(ङ) लोके पुन: पुन: कानि भवन्ति ?
उत्तर. शरीराणि।
(च) किं कृत्वा घृतं पिबेत् ?
उत्तर. ऋणम् ।
6. मञ्जूषातः पदानि चित्वा कथायाः पूर्ति कुरुत
( नासिकायामेव, वारंवारम् , खड्गेन, दूरम्, मित्रता, मक्षिका, व्यजनेन, उपाविशत् , छिन्ना, सुप्त: , प्रियः )
पुरा एकस्य नृपस्य एकः प्रियः वानरः आसीत्। एकदा नृपः सुप्तः आसीत्। वानरः व्यजनेन तम् अवीजयत्। तदैवएका मक्षिका नृपस्य नासिकायाम् उपाविशत्। यद्यपि वानरः वारंवारम् व्यजनेन तां निवारयति स्म । तथापि सा पुनः पुनः नृपस्य नासिकायामेव उपविशति स्म। अन्ते सः मक्षिकां हन्तुं खड्गेन प्रहारम् अकरोत्। मक्षिका तु उड्डीय दूरम् गता, किन्तु खड्गप्रहारेण नृपस्य नासिका छिन्ना अभवत् । अत एवोच्यते – “ मूर्खजनैः सह मित्रता नोचिता।”
7. विलोमपदानि योजयत
अधः | उपरि |
अन्तः | बहि: |
दुर्बुद्धे ! | सुबुद्धे ! |
उच्चैः | नीचै: |
दुर्लभम् | सुलभम् |
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