CLASS – 7 SANSKRIT RUCHIRA PART – 2 CHAPTER – 3 SVAVLAMBANAM | HINDI TRANSLATION | QUESTION ANSWER | कक्षा – 7 संस्कृत रुचिरा भाग – 2 तृतीयः पाठः स्वावलम्बनम् | हिन्दी अनुवाद | अभ्यास:
Class 7 NCERT Sanskrit Ruchira Part 2 Chapter 3 Svavlambanam
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तृतीयः पाठः
स्वावलम्बनम्
NCERT BOOK SOLUTIONS | SOLUTIONS FOR NCERT SANSKRIT CLASS 7 CHAPTER 3 IN HINDI
Class 7 NCERT Sanskrit Ruchira Part 2 Chapter 3 Svavlambanam
( हिन्दी अनुवाद )
कृष्णमूर्ति: श्रीकण्ठश्च मित्रे आस्ताम्। श्रीकण्ठस्य पिता समृद्ध: आसीत्। अत: तस्य भवने सर्वविधानि सुख-साधनानि आसन्। तस्मिन् विशाले भवने चत्वारिंशत् स्तम्भा: आसन्। तस्य अष्टादश-प्रकोष्ठेषु पञ्चाशत् गवाक्षा:, चतुश्चत्वारिंशत् द्वाराणि , षट्त्रिन्शत् विद्युत् – व्यजनानि च आसन्। तत्र दश सेवका: निरन्तरं कार्यं कुर्वन्ति स्म। परं कृष्णमूर्ते: माता पिता च निर्धनौ कृषकदम्पती। तस्य गृहम् आडम्बरविहीनं साधारणञ्च आसीत्।
हिन्दी अनुवाद – कृष्णमूर्ति और श्रीकण्ठ दोनो मित्र थे। श्रीकण्ठ के पिता अमीर थे। इसीलिये उसके भवन मे सभी प्रकार के सुख के साधन थे। उस विशाल भवन मे चालीस खम्भे थे। उसके अठारह कमरो मे पचास खिडकियां, चवालिस दरवाजे और छत्तीस पंखे थे। वहां दस सेवक लगातार काम करते रहते थे। परन्तु कृष्णमूर्ति के माता और पिता निर्धन किसान पति पत्नी थे। उसका घर दिखावे से परे तथा सादा था।
एकदा श्रीकण्ठ: तेन सह प्रात: नववादने तस्य गृहम् अगच्छत्। तत्र कृष्णमूर्ति: तस्य माता पिता च स्वशक्त्या श्रीकण्ठस्य आतिथ्यम् अकुर्वन्। एतत् दृष्ट्वा श्रीकण्ठ: अकथयत्- “मित्र! अहं भवतां सत्कारेण सन्तुष्टोऽस्मि। केवलम् इदमेव मम दुःखं यत् तव गृहे एकोऽपि भृत्य: नास्ति।मम सत्काराय भवतां बहु कष्टं जातम् । मम गृहे तु बहव: कर्मकरा: सन्ति।” तदा कृष्णमूर्ति: अवदत्- ” मित्र! ममापि अष्टौ कर्मकरा: सन्ति। ते च द्वौ पादौ, द्वौ हस्तौ, द्वे नेत्रे, द्वे श्रोत्रे इति। एते प्रतिक्षणं मम सहायका:। किन्तु तव भृत्या: सदैव सर्वत्र च उपस्थिता: भवितुं न शक्नुवन्ति। त्वं तु स्वकार्याय भृत्याधीन: । यदा यदा ते अनुपस्थिता:, तदा तदा त्वं कष्टम् अनुभवसि। स्वावलम्बने तु सर्वदा सुखमेव, न कदापि कष्टं भवति। “
श्रीकण्ठ: अवदत् – ” मित्र ! तव वचनानि श्रुत्वा मम मनसि महती प्रसन्नता जाता। अधुना अहमपि स्वकार्याणि स्वयमेव कर्तुम् इच्छामि।” भवतु , सार्धद्वादशवादनमिदम्। साम्प्रतं गृहं चलामि।
हिन्दी अनुवाद – एक बार श्री कण्ठ उसके साथ सुबह नौ बजे उसके घर गया। वहां कृष्णमूर्ति और उसके माता पिता अपने सामर्थ्य के अनुसार श्री कण्ठ का अतिथि सत्कार करते है। यह देखकर श्री कण्ठ कहता है – ” मित्र ! मैं तुम्हारे अतिथि सत्कार से खुश हूं। केवल यही मेरा दुःख है कि तुम्हारे घर मे एक भी नौकर नही है। मेरे सत्कार के लिये आप सभी को बहुत कष्ट हुआ। मेरे घर मे तो बहुत नौकर हैं। तब कृष्ण मूर्ति बोला – ” मित्र! मेरे भी आठ कर्मचारी हैं। और वे हैं- दो पैर, दो हाथ, दो आंखे और दो कान। वे प्रत्येक क्षण मेरी सहायता करते हैं। किन्तु तुम्हारे नौकर हमेशा और हर जगह उपस्थित नहीं हो सकते।
तुम तो अपने कार्य के लिए नौकरो पर निर्भर रहते हों। जब जब वें अनुपस्थित होते है तब तब तुम कष्ट को अनुभव करते हों। आत्मनिर्भरता मे तो हमेशा सुख ही प्राप्त होता हैं, कभी भी कष्ट नहीं होता हैं।
श्री कण्ठ बोलता हैं- मित्र! तुम्हारे वचनो को सुनकर मेरे मन को बहुत प्रसन्नता हुई। अब मैं भी अपने कार्य स्वयं ही करना चाहता हूँ। ठीक है, अब साढे बारह का समय हो गया हैं। अभी ( मैं ) घर चलता हूँ।
शब्दार्था:
Meaning in Sanskrit | Meaning in Hindi | Meaning in English |
समृद्ध: | धनी | rich |
चत्वारिंशत् | चालीस | forty |
अष्टादश | अठारह | eighteen |
प्रकोष्ठेषु | कमरो मे | in the rooms |
पञ्चाशत् | पचास | fifty |
गवाक्षाः | खिड़कियाँ | windows |
चतुश्चत्वारिंशत् | चवालीस | forty four |
षट्त्रिन्शत् | छत्तीस | thirty six |
कृषकदम्पती | किसान पति पत्नी | farmer couple |
आतिथ्यम्ति | अतिथि सत्कार | respecting guests |
कर्मकर: | काम करने वाला | worker |
भवताम् | आपके | yours |
भृत्य: | नौकर / सेवक | servant |
शक्नुवन्ति | सकते है | able to do |
सार्धद्वादशवादनम् | साढे बारह बजे | half past twelve |
साम्प्रतम् | अभी | now |
अभ्यास:
1. उच्चारण कुरुत
विन्शति: | त्रिन्शत् | चत्वारिन्शत् |
द्वाविन्शति: | द्वात्रिन्शत् | द्विचत्वारिन्शत् |
चतुर्विन्शति: | त्रयस्त्रिन्शत् | त्रयश्चत्वारिन्शत् |
पञ्चविन्शति: | चतुस्त्रिन्शत् | चतुश्चत्वारिन्शत् |
अष्टाविन्शति: | अष्टात्रिन्शत् | सप्तचत्वारिन्शत् |
नवविन्शति: | नवत्रिन्शत् | पञ्चाशत् |
2. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि लिखत
(क) कस्य भवने सर्वविधानी सुख साधनानि आसन् ?
(ख) कस्य गृहे कोऽपि भृत्य: नास्ति ?
(ग) श्रीकण्ठस्य आतिथ्यम् के अकुर्वन् ?
(घ) सर्वदा कुत्र सुखम् ?
(ङ) श्रीकण्ठ: कृष्णमूर्ते: गृहं कदा अगच्छत् ?
(च) कृष्णमूर्ते: कति कर्मकरा: सन्ति ?
उत्तर.
(क) श्रीकण्ठस्य भवने सर्वविधानि सुखसाधनानि आसन्।
(ख) कृष्णमूर्ते: गृहे कोऽपि भृत्य: नास्ति।
(ग) श्रीकण्ठस्य आतिथ्यं कृष्णमूर्ति: तस्य माता पिता च अकुर्वन्।
(घ) सर्वदा स्वावलम्बने सुखम्।
(ड) श्रीकण्ठ: कृष्णमूर्ते: गृहं नववादने अगच्छत्।
(च) कृष्णमूर्ते: अष्टौ कर्मकराः सन्ति।
3. चित्राणि गणयित्वा तदघः संख्यावाचकशब्दं लिखत
अष्टादश
एकविंशति:
पञ्चदश
षट्त्रिंशत्
चतुर्विंशति:
त्रयस्त्रिंशत्
4. मञ्जूषात: अङ्कानां कृते पदानि चिनुत
( चत्वारिंशत्, सप्तविंशतिः, एकत्रिंशत्, पञ्चाशत्, अष्टाविंशति:, त्रिंशत्, चतुर्विंशतिः )
28 – | अष्टाविंशति: |
30 – | त्रिंशत् |
24 – | चतुर्विंशतिः |
50 – | पञ्चाशत् |
27 – | सप्तविंशतिः |
31 – | एकत्रिंशत् |
40 – | चत्वारिंशत् |
5. चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषातः पदानि च प्रयुज्य वाक्यानि रचयत
(1) एषः कृषक: क्षेत्रं कर्षति।
(2) एतौ कृषकौ खनन कार्यम् कुरुत:।
(3) एते कृषका: धान्यम् रोपयन्ति।
6. अधोलिखितान् समयवाचकान् अङ्कान् पदेषु लिखत
यथा -10:30 – सार्धदशवादनम्
5:00 – | पञ्चवादनम् |
7:00 – | सप्तवादनम् |
2:30 – | सार्धद्विवादनम् |
11:00 – | एकादशवादनम् |
4:30 – | सार्धचतुर्वादनम् |
3:30 – | सार्धत्रयवादनम् |
9:00 – | नववादनम् |
12:30 – | सार्धद्वादशवादनम् |
8:00 – | अष्टवादनम् |
7. मञ्जूषात: पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
( षड्, त्रिंशत् , एकत्रिंशत् , द्वौ, द्वादश, अष्टाविंशतिः )
(क) षड् ऋतव: भवन्ति।
(ख) मासा: द्वादश भवन्ति।
(ग) एकस्मिन् मासे त्रिंशत् अथवा एकत्रिंशत् दिवसा: भवन्ति।
(घ) फरवरी मासे सामान्यत: अष्टाविंशति: दिनानि भवन्ति।
(ड) मम शरीरे द्वौ हस्तौ स्त:।
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