CLASS – 7 SANSKRIT RUCHIRA PART – 2 CHAPTER – 2 DURBUDDHI VINASHYATI | Hindi Translation | QUESTIONS ANSWERS | कक्षा – 7 संस्कृत रुचिरा भाग – 2 द्वितीयः पाठः दुर्बुद्धिः विनश्यति | हिन्दी अनुवाद | अभ्यासः
Class 7 NCERT Sanskrit Ruchira Part 2 Chapter 2 Durbuddhi Vinashyati
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द्वितीयः पाठः
दुर्बुद्धि: विनश्यति
Class 7 NCERT Sanskrit Ruchira Part 2 Chapter 2 Durbuddhi Vinashyati
NCERT BOOK SOLUTIONS | SOLUTIONS FOR NCERT SANSKRIT CLASS 7 CHAPTER 2 IN HINDI
( हिन्दी अनुवाद )
अस्ति मगधदेशे फुल्लोत्पलनाम् सर:। तत्र संकट विकटौ हंसौ निवसत:। कम्बुग्रीवनामक: तयो: मित्रम् एक: कूर्म: अपि तत्रैव प्रतिवसति स्म।
हिन्दी अनुवाद – मगध देश मे फुल्लोत्पल नामक सरोवर था। वहां संकट और विकट नामक दो हंस रहते थे। उनका मित्र एक कछुआ भी वही रहता था।
अथ एकदा धीवरा: तत्र आगच्छन्। ते अकथयन्- “वयं श्व: मत्स्यकूर्मादीन् मारयिष्याम:।” एतत् श्रुत्वा कूर्म: अवदत् –“ मित्रे! किं युवाभ्यां धीवराणाम् वार्ता श्रुता ? अधुना किं अहं करोमि ?” हंसौ अवदताम्-“ प्रात: यद् उचितम् तत्कर्त्तव्यम्।”
हिन्दी अनुवाद – एक बार मछुआरे वहां आये। उन्होने कहा – “ हम सब कल मछली कछुए आदि को मारेंगे”। यह सुनकर कछुआ बोला – “ क्या तुम दोनो ने मछुआरों की बातें सुनी ? अब मैं क्या करू ?” दोनो हंस बोले- “ सुबह जैसा उचित लगेगा वैसा ही करेंगे।”
कूर्म: अवदत् –“ मैवम्। तद् यथाऽहम् अन्यं ह्रदं गच्छामि तथा कुरुतम्।” हंसौ अवदताम् –“ आवां किं करवाव ?” कूर्मः अवदत् –“अहं युवाभ्यां सह आकाशमार्गेण अन्यत्र गन्तुम् इच्छामि।”
हिन्दी अनुवाद – ऐसा नही। जिससे मैं दूसरे सरोवर मे जा सकूं वैसा ही करना। दोनो हंस बोले- हम दोनो क्या करे ? कछुआ बोला – मैं तुम्हारे साथ आकाश मार्ग के द्वारा अन्य स्थान पर जाना चाहता हूँ।
हंसौ अवदताम् – “ अत्र कः उपायः”? कच्छप: वदति – “ युवां काष्ठदण्डं एकं चञ्च्वा धारयताम्। अहं काष्ठदण्डमध्ये अवलम्ब्य युवयोः पक्षबलेन सुखेन गमिष्यामि।” हंसौ अकथयताम् –“ सम्भवति एषः उपाय:?” किन्तु अत्र एक: अपायोऽपि वर्तते।
हिन्दी अनुवाद – दोनो हंस बोले –“ उपाय क्या है ?” कछुआ बोलता है – “तुम दोनो एक लकडी के डण्डे को एक चोंच पर धारण करना। मैं लकडी के डण्डे के बीच मे लटक कर तुम दोनो के पंखो के बल से सुखपूर्वक जाऊंगा।” हंसो ने कहा – “ क्या यह उपाय सम्भव हैं ?” किन्तु यहां एक हानि भी हैं।
आवाभ्याम् नीयमानं त्वामवलोक्य जना: किञ्चिद् वदिष्यन्ति एव। यदि त्वमुत्तरम् दास्यसि तदा तव मरणं निश्चितम्। अत: त्वम् अत्रैव वस।” तत् श्रुत्वा क्रुद्धः कूर्म: अवदत् – “किमहं मूर्ख:? उत्तरं न दास्यामि। किञ्चिदपि न वदिष्यामि ।” अत: अहं यथा वदामि तथा युवां कुरुतम्।
हिन्दी अनुवाद – हम दोनो को तुम्हे ले जाते हुए देखकर लोग कुछ बोलेंगें ही। यदि तुम उत्तर दोंगें तब तुम्हारा मरना निश्चित है। इसीलिये तुम यही रहो।” यह सुनकर क्रोधित कछुआ बोला – “ क्या मैं मूर्ख हुं ? उत्तर नही दुंगा। कुछ भी नही बोलुंगा।” इसीलिये मैं जैसा कहता हुं वैसा तुम दोनो करो।
एवं काष्ठदण्डे लम्बमानं कूर्मम् पौरा: अपश्यन्। पश्चाद् अधावन् अवदन् च – “ हंहो! महदाश्चर्यम्। हंसाभ्यां सह कूर्मोऽपि उड्डीयते।” कश्चिद् वदति- “यद्ययं कूर्म: कथमपि निपतति तदा अत्रैव पक्त्वा खादिष्यामि।”
हिन्दी अनुवाद – इस प्रकार लकडी के डण्डे पर लटके कछुए को ले जाते हुए कुछ ग्वालो ने देखा । उसके पीछे भागे और बोंले- “अरे! बहुत आश्चर्य की बात है। हंसो के साथ कछुआ भी उड रहा है।” कुछ बोलते है – यदि यह कछुआ किसी भी तरह गिर जाये तो ( मैं ) यही पकाकर खाऊंगा।”
अपर: अवदत् – सरस्तीरे दग्ध्वा खादिष्यामि।” अन्य अकथयत्-“ गृहं नीत्वा भक्षयिष्यामि” इति। तेषां तद् वचनं श्रुत्वा कूर्म: क्रुद्धः जातः। मित्राभ्याम् दत्तं वचनं विस्मृत्य सः अवदत् – “ यूयं भस्म खादत।” तत्क्षणमेव कूर्म: दण्डात् भूमौ पतित:। पौरे: सः मारित:। अत एवोक्तम्-
सुहृदां हितकामानां वाक्यं यो नाभिनन्दति।
स कूर्म इव दुर्बुद्धि: काष्ठाद् भ्रष्टो विनश्यति।।
हिन्दी अनुवाद – दूसरा बोला – “सरोवर के किनारे जलाकर खाऊंगा।” किसी अन्य ने बोला – “घर ले जाकर खाऊँगा।” उनके वैसे वचन सुनकर कछुआ क्रोधित हो जाता हैं। मित्रो को दिए हुए वचन को भूलकर उसने कहा- “तुम सब राख खाओ”। ( ऐसा बोलते ही ) उसी क्षण कछुआ भूमि पर गिर जाता हैं। ( तथा ) ग्वालो के द्वारा वह ( कछुआ ) मारा जाता हैं।
इसीलिए ऐसा कहा जाता हैं –
भलाई चाहने वाले मित्रो के वचनो जो व्यक्ति प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार नही करता, वह लकडी से गिरे हुए मूर्ख कछुए के समान नष्ट हो जाता है।
शब्दार्था :
MEANING IN SANSKRIT | MEANING IN HINDI | MEANING IN ENGLISH |
तालाब | pond | |
कछुआ | turtle | |
रहता था | was living | |
मछुआरे | fisherman |
मछली , कछुआ आदि को | fish, turtles etc | |
मारेंगे | shall kill | |
ऐसा नहीं | not so | |
तालाब को | to the pond | |
धारण करें | hold |
पंखो के बल से | with the strength of wings | |
हानि | harm | |
ले जाते हुए | being carried | |
देखकर | looking | |
लटकते हुए ( को ) | swinging |
उड़ रहा है | flying | |
भूल कर | forgetting | |
राख | ashes | |
मित्रों का /के /की | of friends | |
कल्याण की इच्छा रखने वाले का /के /की | of wellwishers |
welcomes | ||
दुष्ट बुद्धि वाला | crooked |
अभ्यास:
Class 7 NCERT Sanskrit Ruchira Part 2 Chapter 2 Durbuddhi Vinashyati
1. उच्चारणं कुरुत
2. एकपदेन उत्तरत
(क) कूर्मस्य किं नाम आसीत् ?
उत्तर. कम्बुग्रीव:।
(ख) सरस्तीरे के आगच्छन् ?
उत्तर. धीवरा:।
(ग) कूर्म: केन मार्गेण अन्यत्र गन्तुम् इच्छति ?
उत्तर. आकाशमार्गेण।
(घ) लम्बमानं कूर्मं दृष्ट्वा के अधावन् ?
उत्तर. पौरा:।
3. अधोलिखितवाक्यानि कः कम् प्रति कथयति इति लिखत
कः कथयति | कं प्रति कथयति | |
यथा – प्रात: यद् उचितम् तत्कर्तव्यम्। | हंसौ | कूर्मं प्रति |
(क) अहं भवद्भ्यां सह आकाशमार्गेण गन्तुं इच्छामि। | कूर्म: | हंसौ प्रति |
(ख) अत्र कः उपाय: ? | हंसौ | कूर्मं प्रति |
(ग) अहं उत्तरं न दास्यामि। | कूर्म: | हंसौ प्रति |
(घ) यूयं भस्म खादत। | कूर्म: | पौरान् प्रति |
4. मञ्जूषात: क्रियापदं चित्वा वाक्यानि पूरयत
( अभिनन्दति, भक्षयिष्याम:, इच्छामि, वदिष्यामि, उड्डीयते, प्रतिवसति स्म )
(क) हंसाभ्याम् सह कूर्मोऽपि उड्डीयते।
(ख) अहं किञ्चिदपि न वदिष्यामि।
(ग) यः हितकामानां सुहृदां वाक्यं न अभिनन्दति।
(घ) एक: कूर्म: अपि तत्रैव प्रतिवसति स्म।
(ङ) अहं आकाशमार्गेण अन्यत्र गन्तुम् इच्छामि।
(च) वयं गृहं नीत्वा कूर्मं भक्षयिष्याम:।
5. पूर्णवाक्येन उत्तरत
(क) कच्छप: कुत्र गन्तुम् इच्छति ?
उत्तर. कच्छप: अन्यत्र गन्तुम् इच्छति।
(ख) कच्छप: कम् उपायं वदति ?
उत्तर. कच्छप: वदति – “युवां काष्ठदण्डं एकं धारयताम्। अहं काष्ठदण्ड मध्ये अवलम्ब्य युवयोः पक्षबलेन सुखेन गमिष्यामि।”
(घ) लम्बमानं कूर्मं दृष्ट्वा पौरा: किं अवदन् ?
उत्तर. लम्बमानं कूर्मं दृष्ट्वा पौरा: अवदन् – “ हंहो महदाश्चर्यम्। हंसाभ्यां सह कूर्मोऽपि उड्डीयते।”
(ङ) कूर्म: मित्रयो: वचनं विस्मृत्य किं अवदत् ?
उत्तर. कूर्म: मित्रयो: वचनं विस्मृत्य अवदत् – “ यूयं भस्म खादत।”
6. घटनाक्रमानुसारं वाक्यानि लिखत
उत्तर.
(छ) कूर्म: हंसौ च एकस्मिन् सरसि निवसन्ति स्म।
(ज) केचित धीवरा: सरस्तीरे आगच्छन्।
(झ) ‘ वयं श्व: मत्स्य कूर्मादीन् मारयिष्याम:’। इति धीवरा:अकथयन्।
(ञ) कूर्म: अन्यत्र गन्तुम् इच्छति स्म।
(ट) कूर्म: हंसयो: सहायतया आकाशमार्गेण आगच्छत्।
(ठ) लम्बमानं कूर्मं दृष्ट्वा पौरा: अधावन्।
(ड) पौरा: अकथयन् – वयं पतितं कूर्मं खादिष्याम:।
(ढ) कूर्म: आकाशात् पतित: पौरै: मारितश्च।
7. मञ्जूषात: पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
( जलाशयं, अचिन्तयत् , वृद्धः, दुःखिता:, कोटरे, वृक्षस्य, सर्प:, आदाय, समीपे )
एकस्य वृक्षस्य शाखासु अनेके काका: वसन्ति स्म। तस्य वृक्षस्य कोटरे एक: सर्प: अपि अवसत्। काकानाम् अ
सर्पः काकानाम् शिशून् खादति स्म। काका: दुःखिता: आसन्। तेषु एक: वृद्धः काक: उपायम् अचिन्तयत् ।
वृक्षस्य समीपे जलाशय: आसीत्। तत्र एका राजकुमारी स्नातुं जलाशयं आगच्छति स्म।
शिलायां स्थितं तस्याः आभरणं आदाय एक: काक: वृक्षस्य उपरि अस्थापयत्।
राजसेवका: काकम् अनुसृत्य वृक्षस्य समीपं अगच्छन् तत्र ते तं सर्पं च अमारयन्। अत:
एवोक्तम् – उपायेन सर्वं सिद्ध्यति।
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