Class 10 NCERT Sanskrit Shemushi Part 2 Chapter 12 Anyoktaya कक्षा – 10 संस्कृत शेमूषी भाग – 2 द्वादश: पाठ: अन्योक्तय: | हिन्दी अनुवाद | अभ्यास:
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Class 10 NCERT Sanskrit Shemushi Part 2 Chapter 12 Anyoktaya
द्वादश: पाठ:
अन्योक्तयः
( हिन्दी अनुवाद )
Class 10 NCERT Sanskrit Shemushi Part 2 Chapter 12 Anyoktaya
प्रस्तुतोऽयं पाठः अन्योक्तिविषये वर्तते। अन्योक्तिः नाम अप्रत्यक्षरूपेण व्याजेन वा कस्यापि दोषस्य निन्दाया: कथनम्, गुणस्य प्रशंसा वा। सङ्केतमाध्मेन व्यज्यमाना: प्रशंसादय: झटिति चिरञ्च बुद्धौ अवतिष्ठन्ति। अत्रापि सप्तानां अन्योक्तीनां सङ्ग्रहो वर्तते। याभिः राजहंस- kokil- मेघ – मालाकार – तडाग – सरोवर – चातकादीनां माध्यमेन सत्कर्म प्रति गमनाय प्रेरणां प्राप्यते।
हिन्दी अनुवाद
प्रस्तुत यह पाठ अन्योक्ति के विषय मे अन्योक्ति नाम अप्रत्यक्ष रूप से किसी बहाने अथवा किसी दोष की निन्दा करना अथवा गुण की प्रशंसा करना है। संकेत के माध्यम से किसी की निन्दा अथवा प्रशंसा शीघ्र और देर तक बुद्धि मे बैठ जाती है, अर्थात् पाठको को जल्दी समझ मे आ जाती है। इसमे सात अन्योक्तियो का सङ्ग्रह है। जिनमे राजहंस, कोयल, बादल, मालाकार, तालाब और चातक के आदि माध्यम से अच्छे कर्मो के प्रति जाने की प्रेरणा देते है।
1. एकेन राजहंसेन या शोभा सरसो भवेत्।
न सा बकसहस्रेण परितस्तीरवासिना।।
अन्वय: – एकेन राजहंसेन सरस: या शोभा भवेत्, परित: तीरवासिना बकसहस्रेण सा ( शोभा ) न ( भवति )।
हिन्दी अनुवाद – एक राजहंस से जो शोभा तालाब की होती है। वह शोभा किनारों पर चारों ओर रहने वाले हजारों बगुलों से नहीं होती है अर्थात् एक विद्वान से संसार अथवा समाज का कल्याण होता है परन्तु उसी समाज में रहने वाले हज़ारों मूर्खो से उसकी शोभा नहीं होती है।
2. भुक्ता मृणालपटली भवता निपीता
न्यम्बूनि यत्र नलिनानि निषेवितानि।
रे राजहंस! वद तस्य सरोवरस्य,
कृत्येन केन भवितासि कृतोपकारः॥
अन्वय: – यत्र भवता मृणालपटली भुक्ता, अम्बूनि निपीतानि नलिनानि निषेवितानि, रे राजहंस! तस्य सरोवरस्य केन कृत्येन कृतोपकार: भविता असि, वद।।
हिन्दी अनुवाद – हे राजहंस! जहाँ आपने कमलनाल के समूह को खाया है, जल को अच्छी तरह से पीया है, कमल के फलों को सेवन किया हैं। बताओ, उस तालाब ( सरोवर ) का किस काम से किया गया उपकार चुकाओगे ? अर्थात् जिस देश, जाति, धर्म और संस्कृति से हे मानव! तुम्हारा यह जीवन बना ( निर्मित ) हुआ है उसका बदला किस कार्य से चुका सकोगे ? अतः इन सभी के ऋणी रहो और सम्मान करो।
3. तोयैरल्पैरपि करुणया भीमभानौ निदाघे,
मालाकार! व्यरचि भवता या तरोरस्य पुष्टिः।
सा किं शक्या जनयितुमिह प्रावृषेण्येन वारां,
धारासारानपि विकिरता विश्वतो वारिदेन॥
अन्वय: – हे मालाकार! भीमभानौ निदाघे अल्पै: तोयै: अपि भवता करुणया अस्य तरो: या पुष्टिः व्यरचि। वाराम् प्रावृषेण्येन विश्वत: धारासारान् अपि विकिरता वारिदेन इह जनयितुम् सा (पुष्टिः) किम् शक्य।।
हिन्दी अनुवाद – हे माली! आपके द्वारा इस वृक्ष का भीषण सूर्य से युक्त अत्यधिक ग्रीष्म काल मे दयाभाव से थोड़े से भी जल के द्वारा जो पोषण किया गया, क्या इस संसार मे चारो तरफ से भी जल के धारा प्रवाहो को बरसाते हुए बदल के द्वारा वह पोषण उत्पन्न किया जा सकता है ? अर्थात नहीं ? अर्थात एक बार मे ही अत्यधिक सेवा करने की अपेक्षा जीवन मे निरंतर थोड़ी थोड़ी सेवा करने का अधिक महत्त्व है।
4. आपेदिरेऽम्बरपथं परितः पतङ्गाः,
भृङ्गा रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते।
सङ्कोचमञ्चति सरस्त्वयि दीनदीनो,
मीनो नु हन्त कतमां गतिमभ्युपैतु॥
अन्वय: – पतङ्गा: परित: अम्बरपथम् आपेदिरे भृङ्गाः रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते। सर: त्वयि संकोचम् अञ्चति, हन्त दीनदीन: मीन: नु कतमां गतिम् अभ्युपैतु।
हिन्दी अनुवाद – हे तालाब, तुम्हारे संकुचित हो जाने पर ( सूख जाने पर ) सब तरफ के पक्षियों ने आकाश मार्ग को प्राप्त कर लिया, भौरे आम की मंजरियों पर आश्रित हो गए, पर दीनो में भी दीन मछली किस गति को प्राप्त करे, यह चिन्तनीय है।
Class 10 NCERT Sanskrit Shemushi Part 2 Chapter 12 Anyoktaya
5. एक एव खगो मानी वने वसति चातकः।
पिपासितो वा म्रियते याचते वा पुरन्दरम्॥
अन्वय: – एक एव मानी खग: चातक: वने वसति, वा पिपासितः म्रियते पुरन्दरम् याचते वा।
हिन्दी अनुवाद – जंगल मे केवल एक ही स्वाभिमानी चातक पक्षी रहता है, जो या तो प्यासा मार जाता है या केवल इन्द्र से याचना करता है। अर्थात स्वाभिमानी व्यक्ति सभी के सामने हाथ नही फैलाते है।
6. आश्वास्य पर्वतकुलं तपनोष्णतप्त-
मुद्दामदावविधुराणि च काननानि।
नानानदीनदशतानि च पूरयित्वा,
रिक्तोऽसि यज्जलद! सैव तवोत्तमा श्रीः॥
अन्वय: – तपनोष्णतप्तम् पर्वतकुलम् आश्वास्य उद्दामदावविधुराणि काननानि च ( आश्वास्य ) नानानदीनदशतानि पूरयित्वा च हे जलद! यत् रिक्त: असि तव सा एक उत्तमा: श्री:।।
हिन्दी अनुवाद – रे जल बरसाने वाले बादल ! सूरज की गर्मी से तपे हुए पर्वत समूह को संतुष्ट करके, उन्नत वृक्षो से रहित वनों को, अनेक नदियों को तथा सैकड़ो नदियों को जल से भर कर तुम अब जल से रिक्त हो गए हो, यह तुम्हारी सर्वोत्तम श्री ( विशिष्टता ) है। अर्थात परोपकार में सर्वस्व निछावर कर अपनी शून्य अवस्था को प्राप्त हो जाना ही परोपकारी की सर्वोत्तम स्थिति होती है।
7. रे रे चातक! सावधानमनसा मित्र! क्षणं श्रूयता –
मम्भोदा बहवो हि सन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः।
केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा,
यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः॥
अन्वय: – रे रे मित्र चातक! सावधानमनसा क्षणं श्रूयताम्, गगने हि बहव: अम्भोदा: सन्ति, सर्वे अपि एतादृशा: न ( सन्ति ) केचित् धरिणीं वृष्टिभि: आर्द्रयन्ति, केचिद् वृथा गर्जन्ति, ( त्वम् ) यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरत: दीनं वचः मा ब्रूहि।
हिन्दी अनुवाद – हे मित्र पपीहे! सावधान मन से तनिक सुनो। आकाश में निश्चय से बहुत से बादल हैं, परन्तु सभी ऐसे ( एक जैसे ) नहीं हैं। उनमें से कुछ धरती को बारिशों से भिगो देते हैं और कुछ बेकार में गरजते ( ही ) हैं, तुम जिस-जिस को ( सम्पन्न ) देखते हो उस-उस के आगे अपने दुःख भरे वचनों को मत बोलो। अर्थात् हमे हर किसी के सामने हाथ नही फैलाना चाहिये।
शब्दार्था:
Class 10 NCERT Sanskrit Shemushi Part 2 Chapter 12 Anyoktaya
सरस: – तालाब का
बकसहस्रेण – हजारो बगुलो से
परित: – चारो ओर
तीरवासिना – तटवासी के द्वारा
मृणालपटली – कमलनालो का समूह
निपीतानि – भली भाँति पाए गए
अम्बूनि – जल
नलिनानि – कमलों को
निषेवितानि – सेवन किये गए
भविता – होगा
कृत्येन – कार्य से
कृतोपकार: – उपकार किया हुआ ( प्रत्युपकार करने वाला )
तोयै: – जल से
भीमभानौ – प्रचण्ड सूर्य होने पर ( सूर्य के अत्यधिक तपने पर )
निदाघे – ग्रीष्मकाल में
मालाकार् – हे माली
पुष्टिः – पोषण
जनयितुं – उत्पन्न करने के लिए
प्रावृषेण्येन – वर्षाकालिक के द्वारा
वारिदेन – बादल के द्वारा
धारासारान् – धाराओ का प्रवाह
वाराम् – जलो के
विकिरता – ( जल ) बरसाते हुए
आपेदिरे – प्राप्त कर लिये
अम्बरपथम् – आकाश मार्ग को
पतङ्गा: – पक्षी
भृङ्गा: – भौरे, भँवरे
रसालमुकुलानि – आम की मंजरियों को
सङ्कोचम् अञ्चति – संकुचित होने पर
मीन: – मछली
पुरन्दम् – इन्द्र को
मानी – स्वाभिमानी
अभ्युपैतु – प्राप्त करे
आश्वास्य – तृप्त करके
पर्वतकुलम् – पर्वतो के समूह को
तपनोष्णतप्तम् – सूर्य की गर्मी से तपे हुए को
उद्दामदावविधुराणि – ऊँचे काष्ठों ( वृक्षों ) से रहित को
नानानदिनदशतानि – अनेक नदियों और सैकड़ों नदो को
काननानि – वन
पूरयित्वा – पूर्ण करके ( भरकर )
पिपासितः – प्यासा
सावधानमनसा – ध्यान से
अम्भोदा: – बादल
गगने – आकाश मे
आर्द्रयन्ति – जल से भिगो देते है
वसुधाम् – पृथ्वी को
गर्जन्ति – गर्जना करते हैं
पुरत: – आगे, सामने
अभ्यास:
Class 10 NCERT Sanskrit Shemushi Part 2 Chapter 12 Anyoktaya
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) कस्य शोभा एकेन राजहंसेन भवति ?
उत्तर. सरोवरस्य
(ख) सरसः तीरे के वसन्ति ?
उत्तर. बकसहस्रेण
(ग) कः पिपासितः म्रियते ?
उत्तर. चातकः
(घ) के रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते ?
उत्तर. भृङ्गाः
(ङ) अम्भोदाः कुत्र सन्ति ?
उत्तर. गगने
प्रश्न 2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(क) सरसः शोभा केन भवति ?
उत्तर. सरसः शोभा राजहंसेन भवति।
(ख) चातक: किमर्थं मानी कथ्यते ?
उत्तर. चातक: पुरन्दरम् याचते । अतः चातक: मानी कथ्यते।
(ग) मीनः कदा दीनां गतिं प्राप्नोति ?
उत्तर. सरोवरस्य सङ्कोचम् अञ्चति मीनः दीनां गतिं प्राप्नोति।
(घ) कानि पूरयित्वा जलदः रिक्तः भवति ?
उत्तर. नानानदीनदशतानि पूरयित्वा जलद: रिक्तः भवति।
(ङ) वृष्टिभिः वसुधां के आर्द्रयन्ति ?
उत्तर. वृष्टिभिः वसुधां अम्भोदाः आर्द्रयन्ति।
प्रश्न 3. अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) मालाकारः तोयैः तरोः पुष्टिं करोति।
प्रश्न. मालाकारः कैः तरोः पुष्टिं करोति ?
(ख) भृङ्गाः रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते।
प्रश्न. भृङ्गाः कानि समाश्रयन्ते ?
(ग) पतङ्गाः अम्बरपथम् आपेदिरे।
प्रश्न. के अम्बरपथम् आपेदिरे ?
(घ) जलदः नानानदीनदशतानि पूरयित्वा रिक्तोऽस्ति।
प्रश्न. कः नानानदीनदशतानि पूरयित्वा रिक्तोऽस्ति ?
(ङ) चातकः वने वसति।
प्रश्न. चातकः कुत्र वसति ?
प्रश्न 4. अधोलिखितयोः श्लोकयोः भावार्थं स्वीकृतभाषया लिखत
Class 10 NCERT Sanskrit Shemushi Part 2 Chapter 12 Anyoktaya
(अ) तोयैरल्पैरपि …………….. वारिदेन।
भावार्थ: – एकस्मिन्नेव समये अतिसेवया न तावान् लाभः यावल्लाभः नैरन्तर्येण शनैः शनैः सेवया भवति।
(आ) रे रे चातक ……………………. दीनं वचः।
भावार्थ: – प्रत्येकं जनाय याचनं कदापि उचितं न भवति।
प्रश्न 5. अधोलिखितयोः श्लोकयोः अन्वयं लिखत
(अ) आपेदिरे ……… कतमां गतिमभ्युपैति ।
उत्तर. पतङ्गाः परितः अम्बरपथम् आपेदिरे, भृङ्गाः रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते। सरः त्वयि सङ्कोचम् अञ्चति, हन्त दीनदीनः मीनः तु कतमां गतिम् अभ्युपैतुः।
(आ) आश्वास्य ………… सैव तवोत्तमा श्रीः॥
उत्तर. तपनोष्णतप्तम् पर्वतकुलम् आश्वास्य उद्दामदावविधुराणि काननानि च नानानदीनदशतानि पूरयित्वा च हे जलद! यत् रिक्तः असि तव सा एव उत्तमा श्रीः।
प्रश्न 6. उदाहरणमनुसत्य सन्धिं/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत
(1) यथा – अन्य: + उक्तय: = अन्योक्तय:
(क) निपीतानि + अम्बूनि = निपीतान्यम्बूनि
(ख) कृत + उपकार: = कृतोपकार:
(ग) तपन + उष्णतप्तम् = तपनोष्णतप्तम्
(घ) तव + उत्तमा = तवोत्तमा
(ङ) न + एतादृशा: = नैतादृशा:
(2) यथा – पिपासितः + अपि = पिपासितोऽपि
(क) कः + अपि = कोऽपि
(ख) रिक्त: + असि = रिक्तोऽपि
(ग) मीन: + अयम् = मीनोऽयम्
(घ) सर्वे + अपि = सर्वेऽपि
(3) यथा – सरस: + भवेत् = सरसो भवेत्
(क) खग: + मानी = खगोमानी
(ख) मीन: + नु = मीनो नु
(ग) पिपासितः + वा = पिपासितो वा
(घ) पुरत: + मा = पुरतो मा
(4) यथा – मुनि: + अपि = मुनिरपि
(क) तोयै: + अल्पै: = तोयैरपि
(ख) अल्पै: + अपि = अल्पैरपि
(ग) तरो: + अपि = तरोरपि
(घ) वृष्टिभि: + आर्द्रयन्ति = वृष्टिभिरार्द्रयन्ति
प्रश्न 7. उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितैः विग्रहपदैः समस्तपदानि रचयत
विग्रहपदानि — | समस्त पदानि |
यथा – पीतं च तत् पङ्कजम् = | पीतपङ्कजम् |
(क) राजा च असौ हंसः = | राजहंस: |
(ख) भीमः च असौ भानुः = | भीमभानु: |
(ग) अम्बरम् एव पन्थाः = | अम्बरपंथा: |
(घ) उत्तमा च इयम् श्रीः = | उत्तमश्री: |
(ङ) सावधानं च तत् मनः, तेन = | सावधानमनसा |
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