दशम: पाठः
भूकंपविभीषिका
( हिन्दी अनुवाद )
प्रस्तुतोऽयं पाठः अस्माकं वातावरणे संभाव्यमानप्रकोपेषु अन्यतमां भूकम्पस्य विभीषिकां द्योतयति। प्रकृतौ जायमाना: आपद: भयावहप्रलयं समुत्पाद्य मानवजीवनं संत्रासयन्ति, ताभिः प्राणिनां सुखमयं जीवनं दुःखमयं सञ्जायते। एतासु प्रमुखा: सन्ति- झञ्झावात: , भूकम्पनम्, जलोपप्लव:, अतिवृष्टि:, अनावृष्टि:, शिलास्खलनम्, भूविदारणम्, ज्वालामुखस्फोटादय:। अत्र पाठे भूकम्पविषये चिन्तनं विहितं यत् आपत्काले विपन्नतां त्यक्त्वा साहसेन यत्नं कुर्म: चेत् दारुणविभीषिकया संरक्षिता भवाम:।
हिन्दी अनुवाद
प्रस्तुत यह पाठ हमारे वातावरण में संभावित प्रकोपो में एक भूकंप की भयावता का द्योतक है।प्रकृति के द्वारा उत्पन्न आपदा भयानक प्रलय को उत्पन्न करके मानव जीवन को पीड़ित करती है, उन प्राणियो के सुखमय जीवन को दुःखमय बना देती है। इनमे से प्रमुख है- तूफान, भूकंप, बाढ़, अत्यधिक बारिश, सूखा, पत्थर का खिसकना, पृथ्वी में दरार आना, ज्वालामुखी आदि।इस पाठ में भूकंप के विषय मे चिंतन किया गया कि आपात काल मे चिंता को छोड़कर साहस के साथ प्रयत्न करना चाहिए, जिससे कि भयानक आपदा से सुरक्षित रह सके।
1. एकोत्तर द्विसहस्रखीष्टाब्दे ( 2001 ईस्वीये वर्षे ) गणतन्त्र-दिवस-पर्वणि यदा समग्रमपि भारतराष्ट्रं नृत्य-गीतवादित्राणाम् उल्लासे मग्नमासीत् तदाकस्मादेव गुर्जर- राज्यं पर्याकुलं, विपर्यस्तम्, क्रन्दनविकलं, विपन्नञ्च जातम्। भूकम्पस्य दारुण- विभीषिका समस्तमपि गुर्जरक्षेत्रं विशेषेण च कच्छजनपदं ध्वंसावशेषु परिवर्तितवती। भूकम्पस्य केन्द्रभूतं भुजनगरं तु मृत्तिकाक्रीडनकमिव खण्डखण्डम् जातम्। बहुभूमिकानि भवनानि क्षणेनैव धराशायीनि जातानि। उत्खाता विद्युद्दीपस्तम्भाः। विशीर्णाः गृहसोपान-मार्गाः। फालद्वये विभक्ता भूमिः। भूमिगर्भादुपरि निस्सरन्तीभिः दुर्वार-जलधाराभिः- महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्। सहस्रमिताः प्राणिनस्तु क्षणेनैव मृताः। ध्वस्तभवनेषु सम्पीडिता सहस्रशोऽन्ये सहायतार्थं करुणकरुणं क्रन्दन्ति स्म। हा दैव! क्षुत्क्षामकण्ठाः मृतप्रायाः केचन शिशवस्तु ईश्वरकृपया एव द्वित्राणि दिनानि जीवन धारितवन्तः।
हिन्दी अनुवाद
सन् दो हजार एक के साल ( 26 जनवरी 2001 ई० ) गणतन्त्र-दिवस-पर्व पर जब सारा भारत देश नाचने-गाने और बजाने की खुशी में मग्न था तब अचानक ही गुजरात राज्य, चारों ओर से व्याकुल, अस्त-व्यस्त, रोने-चिल्लाने से दु:खी और मुसीबत में फँस गया। भूकम्प की भयानक मुसीबत ने सम्पूर्ण गुजरात क्षेत्र को विशेषकर कच्छ जिले को विनाश के बाद बची हुई वस्तु के रूप में बदल दिया था। भूकम्प का केन्द्र रहा भुज शहर तो मिट्टी के खिलौने की तरह टुकड़े-टुकड़े हो ( टूट-फूट ) गया। बहुमंजिली इमारतें तो क्षण भर में ही धराशायी ( गिर ) हो गईं। बिजली के खंभे उखड़ गए। घर की सीढ़ीनुमा रास्ते बिखर गए थे। धरती दो भागों में बँट गई थी। धरती के अन्दर से ऊपर की ओर निकलती हुई जलधाराओं ने तो महाप्रलय का दृश्य उपस्थित कर दिया था। हजारों की संख्या में प्राणी क्षणभर में ही मर गए थे। टूटे हुए भवनों में दु:खी हजारों दूसरे लोग सहायता के लिए करुण विलाप कर रहे थे। भूख से दुर्बल ( सूखे ) कण्ठ वाले लगभग मरे हुए ( मरे हुए से ) कुछ बच्चों ने तो ईश्वर की कृपा से दो-तीन दिन ही जीवन धारण किए।
2. इयमासीत् भैरवविभीषिका कच्छ-भूकम्पस्य। पञ्चोत्तर-द्विसहस्रखीष्टाब्दे (2005 ईस्वीये वर्षे) अपि कश्मीर-प्रान्ते पाकिस्तान-देशे च धरायाः महत्कम्पनं जातम्। यस्मात्कारणात् लक्षपरिमिताः जनाः अकालकालकवलिताः। पृथ्वी कस्मात्प्रकम्पते वैज्ञानिकाः इति विषये कथयन्ति यत् पृथिव्या अन्तर्गर्भे विद्यमानाः बृहत्यः पाषाणशिलाः यदा संघर्षणवशात् त्रुट्यन्ति तदा जायते भीषणं संस्खलनम्, संस्खलनजन्यं कम्पनञ्च। तदैव भयावहकम्पनं धरायाः उपरितलमप्यागत्य महाकम्पनं जनयति येन महाविनाशदृश्यं समुत्पद्यते।
हिन्दी अनुवाद
यह कच्छ के भूकम्प की भयानक विभीषिका थी। दो हजार पाँच ईस्वीय वर्ष (2005 ई.) में भी कश्मीर राज्य और पाकिस्तान देश में धरती का महा कम्पन्न हुआ था। जिसके कारण से लाखों लोग असमय ही मौत की भेंट चढ़ गए थे। धरती कैसे काँपती है वैज्ञानिक इस विषय में कहते हैं कि पृथ्वी के अन्दर विद्यमान ( स्थित ) बड़ी-बड़ी पत्थर की शिलाएँ जब घर्षण ( कम्पन ) के कारण टूटती हैं तब भयंकर स्खलन ( क्षरण / पतन ) और स्खलन से उत्पन्न (होने वाला) कंपन पैदा होता है। तभी भयंकर कंपन धरती के ऊपरी तल पर आकर महान कँपकँपी पैदा करता है जिससे महाविनाश का दृश्य पैदा होता है।
3. ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायत इति कथयन्ति भूकम्पविशेषज्ञाः। पृथिव्याः गर्भे विद्यमानोऽग्निर्यदा खनिजमृत्तिकाशिलादिसञ्चयं क्वथयति तदा तत्सर्वमेव लावारसताम् उपेत्य दुर्वारगत्या धरा पर्वतं वा विदार्य बहिर्निष्क्रामति। धूमभस्मावृतं जायते तदा गगनम्। सेल्सियश-ताप-मात्राया अष्टशताङ्कतामुपगतोऽयं लावारसो यदा नदीवेगेन प्रवहति तदा पार्श्वस्थग्रामा नगराणि वा तदुदरे क्षणेनैव समाविशन्ति। निहन्यन्ते च विवशाः प्राणिनः। ज्वालामुद्गिरन्त एते पर्वता अपि भीषणं भूकम्पं जनयन्ति।
हिन्दी अनुवाद
ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोटों से भी भूकम्प उत्पन्न होता है ऐसा भूकम्प के विशेषज्ञ कहते हैं। पृथ्वी के अन्दर ( गर्भ में ) स्थित आग जब खनिजों, मिट्टी और शिला ( पत्थर ) आदि को तपाती ( उबालती ) है तब वह सब अंगारों का रूप धारण करके तेज़ गति से धरती अथवा पहाड़ को फोड़कर ( फाड़कर ) बाहर निकलता है। तब आकाश धुएँ और राख से ढक जाता है। सेल्सियस की गर्मी मात्रा के आठ सौ ( 800 ) अंकों ( आठ सौ डिग्री सेल्सियस ) को प्राप्त यह लावा ( अंगारे ) जब नदी की गति से ( नीचे ) बहता है तब पास में स्थित गाँव अथवा शहर क्षण भर में ही उसके पेट में समा जाते हैं और विवश ( बेचारे ) प्राणी मारे जाते हैं। ज्वालाओं को उगलते हुए ये पहाड़ भी भयानक भूकम्प को पैदा करते हैं।
4. यद्यपि दैवः प्रकोपो भूकम्पो नाम, तस्योपशमनस्य न कोऽपि स्थिरोपायो दृश्यते। प्रकृतिसमक्षमद्यापि विज्ञानगर्वितो मानवः वामनकल्प एव तथापि भूकम्परहस्यज्ञाः कथयन्ति यत् बहुभूमिकभवननिर्माणं न करणीयम्। तटबन्धं निर्माय बृहन्मात्रं नदीजलमपि नैकस्मिन् स्थले पुञ्जीकरणीयम् अन्यथा असन्तुलनवशाद् भूकम्पसम्भवति। वस्तुतः शान्तानि एवं पञ्चतत्त्वानि क्षितिजलपावकसमीरगगनानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां कल्पन्ते। अशान्तानि खलु तान्येव महाविनाशम् उपस्थापयन्ति।
हिन्दी अनुवाद
जबकि भूकम्प दैवीय ( प्राकृतिक ) प्रकोप ( मुसीबत ) है, अतः उसके निराकरण ( शान्ति ) का कोई स्थिर ( कारगर ) उपाय नहीं दिखाई देता है। प्रकृति के सामने आज भी विज्ञान के ज्ञान से घमण्डी मनुष्य बौने की तरह ही है तो भी भूकम्प के रहस्यों को जानने वाले विद्वान कहते हैं कि बहुमंजिले भवन को नहीं बनाना चाहिए। बाँध बनाकर बड़ी मात्रा में नदी के जल को भी एक स्थान पर नहीं रोकना चाहिए। नहीं तो असन्तुलन के कारण भूकम्प सम्भव है। वास्तव में शान्त पाँचों ही तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश धरती के योग-क्षेम ( अप्राप्त की प्राप्ति और प्राप्ति की रक्षा ) के लिए समर्थ कहलाते हैं। निश्चय से अशान्त वे ही महाविनाश को पैदा करते हैं।
शब्दार्था:
पर्याकुलम् – चारो ओर से बेचैन
विपर्यस्तम् – अस्त व्यस्त
विपन्नम् – मुसीबत में
दारुणविभीषिका – अत्यधिक भय
ध्वंसावशेषु – विनाश के बाद बची हुई वस्तु
मृत्तिकाक्रीडनकमिव – मिट्टी के खिलौने के समान
बहुभूमिकानि भवनानि – बहुमंजिले मकान
उत्खाता: – उखाड़े ज्ञे
विशीर्णा: – बिखर गये
फालद्वये – दो खंडो में
निस्सरन्तीभि: – निकलती हुई
दुर्वार: – जिनको हटाना कठिन है
महाप्लावनम् – विशाल बाढ़
क्षुत्क्षामकण्ठ: – भूख से दुर्बल कण्ठ वाले
कालकवलिता: – मृत्यु को प्राप्त हुए
संस्खलनम् – स्थान से हटना
जनयति – उत्पन्न करती है
भूकम्पविशेषज्ञा: – भूमि कंपन के रहस्य विशेषज्ञ
खनिजम् – भूमि को खोदने से प्राप्त वस्तु
क्वथयति – उबालती है, तपाती है
विदार्य – फाड़कर
पार्श्वस्थ – ग्रामात् – समीप के गांव
उदरे – पेट मे
समाविशन्ति – समा जाती है
उद्गिरन्तः – प्रकट करते हुए
उपशमनस्य – शान्त करने का
वामनकल्पः – बौना
निर्माय – बनाकर
पुञ्जीकरणीयम् – इकट्ठा करना चाहिए
योगक्षेमाभ्याम् – अप्राप्त की प्राप्ति योग है, प्राप्त की रक्षा क्षेम है – उन दोनों के लिए
अभ्यास:
1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) कस्य दारुण विभीषिका गुर्जरक्षेत्रं ध्वंसावशेषेषु परिवर्तितवती ?
उत्तर. भूकम्पस्य
(ख) किदृशानि भवनानि धाराशयीनि जातानि ?
उत्तर. बहुभूमिकानि
(ग) दूर्वार जलधाराभि: किम् उपस्थितम् ?
उत्तर. महाप्लावनदृश्यम्
(घ) कस्य उपशमनस्य स्थिरोपाय: नास्ति ?
उत्तर. भूकम्पस्य
(ङ) कीदृशा: प्राणिन: भूकम्पेन निहन्यन्ते ?
उत्तर. विवशा:
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(क) समस्तराष्ट्रं कीदृशे उल्लासे मग्नम् आसीत् ?
उत्तर. समस्तराष्ट्रं नृत्यगीतवादित्राणाम् उल्लासे मग्नम् आसीत्।
(ख) भूकम्पस्य केंद्रबिन्दु: कः जनपद: आसीत् ?
उत्तर. भूकम्पस्य केंद्रबिन्दु: कच्छजनपद: आसीत्।
(ग) पृथिव्या: स्खलनात् किं जायते।
उत्तर. पृथिव्या: स्खलनात् कम्पनं जायते।
(घ) समग्रं विश्वं कै: आतंकित: दृश्यते ?
उत्तर. समग्रं विश्वं भूकम्पैः आतंकित: दृश्यते।
(ङ) केषां विस्फोटैरपि भूकंपो जायते ?
उत्तर. ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकंपो जायते।
3. स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) भूकम्पविभीषिका विशेषेण कच्छ जनपदं ध्वंसावशेषेषु परिवर्तितवति।
प्रश्न. भूकम्पविभीषिका विशेषेण कच्छ जनपदं केषु परिवर्तितवति।
(ख) वैज्ञानिकाः कथयन्ति यत् पृथिव्या: अन्तर्गर्भे, पाषाण शिलानां संघर्षणेन कम्पनं जायते।
प्रश्न. के कथयन्ति यत् पृथिव्या: अन्तर्गर्भे, पाषाण शिलानां संघर्षणेन कम्पनं जायते।
(ग) विवशा: प्राणिन: आकाशे पिपीलिका: इव निहन्यन्ते।
प्रश्न. विवशा: प्राणिन: कुत्र पिपीलिका: इव निहन्यन्ते।
(घ) एतादृशी भयावहघटना गढ़वालक्षेत्रे घटिका।
प्रश्न. कीदृशी भयावहघटना गढ़वालक्षेत्रे घटिका।
(ङ) तदिदानीं भूकम्पकारणं विचारणीयं तिष्ठति।
प्रश्न. तदिदानीं किं विचारणीयं तिष्ठति।
4. ‘भूकम्पविषये’ पञ्चवाक्यमितम् अनुच्छेदं लिखत।
1. भूकम्पस्य पृथिव्यां भीषण: परिणामो दृश्यते।
2. यदा भूकम्प: आयाति तदा भूमि: प्रकम्पते, भवनानि च ध्वस्तानि भवन्ति।
3. प्रकृतेः असंतुलनं जायते,तदा भूकम्प: आयाति।
4. भूकंपे क्षणमात्रेण महती क्षतिः जायते।
5. भूगर्भस्थानाम् शिलानाम् विस्फोटनेन भूकम्प: जायते।
5. कोष्ठकेषु दत्तेषु धातुषु निर्देशानुसारं परिवर्तनं विधाय रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) समग्रं भारतम् उल्लासे मग्न: अस्ति। ( अस् + लट् लकारे )
(ख) भूकम्पविभीषिका कच्छ्छाजनपदं विनष्टं कृतवती। ( कृ + क्तवतु + ङीपः )
(ग) क्षणेनैव प्राणिन: गृहविहीना: अभवन्। ( भू + लङ्, प्रथमं पुरुषः बहुवचनम् )
(घ) शान्तानि पञ्चतत्त्वानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां भवन्ति। ( भू + लट्, प्रथमं पुरुषः बहुवचनम् )
(ड) मानवा: पृच्छन्ति यत् बहुभूमिकभवननिर्माणं करणीयम् न वा ? ( प्रच्छ् + लट्, प्रथमं पुरुषः बहुवचनम् )
(च) नदीवेगेन ग्रामा: तदुदरे समाविशेयु:। ( सम् + आ + विश् + विधिलिङ्,प्रथम पुरुषः बहुवचनम् )
6. सन्धिं/ सन्धिविच्छेदं च कुरुत
(अ) परसवर्णसन्धि नियमानुसारम्
(क) किञ्च = किम् + च।
(ख) नगरन्तु = नगरम् + तु।
(ग) विपन्नञ्च = विपन्नम् + च।
(घ) किन्नु = किम् + नु।
(ड) भुजनगरन्तु = भुजनगरम् + तु।
(च) सञ्चय: = सम् + चय:।
(आ) विसर्गसन्धिनियमानुसारम्
(क) शिशवस्तु = शिशव: + तु।
(ख) विस्फोटैरपि = विस्फोटैः + अपि
(ग) सहस्रशोऽन्ये = सहस्रशः + अन्ये
(घ) विचित्रोऽयम् = विचित्रः + अयम्
(ड) भूकम्पो जायते = भूकम्पः + जायते
(च) वामनकल्प एव = वामनकल्पः + एव
7. (अ) ‘क’ स्तम्भे पदानि दत्तानि ‘ ख’ स्तम्भे विलोमपदानि, तयोः संयोगं कुरुत
क | ख |
सम्पन्नम् | विपन्नम् |
ध्वस्तभवनेषु | नवनिर्मितभवनेषु |
निस्सरन्तीभि: | प्रविशन्तीभि: |
निर्माय | विनाश्य |
क्षणेनैव | सुचिरेनैवे |
(आ) ‘क’ स्तम्भे पदानि दत्तानि ‘ ख ‘ स्तम्भे समानार्थक पदानि, तयोः संयोगं कुरुत
क | ख |
पर्याकुलम् | व्याकुलम् |
विशीर्णा: | नष्टा: |
उद्गिरन्त: | प्रकटयन्त: |
विदार्य | सन्त्रोट्य |
प्रकुपिताम् | क्रोधयुक्ताम् |
8. (अ) उदाहरणमनुसृत्य प्रकृति- प्रत्यययो: विभाग कुरुत
यथा – परिवर्तितवति = परि + वृत + क्तवतु + ङीप् ( स्त्री )
धृतवान् = धृ + क्तवतु
हसन् = हस् + शतृ
विशीर्णा = वि + शॄ + क्त + टाप् ( स्त्री )
प्रचलन्ती = प्र + चल् + शतृ + ङीप् ( स्त्री )
हत: = हन् + क्त
(आ) पाठात् विचित्य समस्तपदानि लिखत
महत् च तत् कम्पनं = महकम्पनम्
दारुणा च सा विभीषिका = दारुणविभीषिका
ध्वस्तेषु च तेषु भवनेषु = ध्वस्तभवनेषु
प्राक्तने च तस्मिन् युगे = प्राक्तनयुगे
महत् च तत् राष्ट्र तस्मिन् = महाराष्ट्रम्
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